मोटे अनाज स्वास्थ्य हेतु रामबाण- PM मोदी ने इस फसल को लेकर कही यह बात

मोटे अनाज स्वास्थ्य हेतु रामबाण- PM मोदी ने इस फसल को लेकर कही यह बात

नई दिल्ली। हमारे देश में मोटे अनाज कभी गरीबों का भोजन समझे जाते थे लेकिन अब चना गेहूं से भी महंगा है। मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिए रामबाण हैं, साथ ही इनसे पानी की बचत होती है। मोटे अनाजों को उगाने में पानी की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। इसलिए हमारे देश ही नहीं, वैश्विक स्तर पर भी मोटे अनाज उगाने और खाने की पैरवी की जाती है। मोटे अनाजों मंे बाजरा भी शामिल है जो हमारे देश मे बहुतायत मंे उगाया जाता था लेकिन अब उसकी खेती का रकबा कम हो गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस बाजरे को प्रोत्साहन देने के लिए ही वर्ष 2023 को मिलेट्स इयर अर्थात् बाजरा दिवस घोषित किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 16 सितम्बर को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भी सदस्य देशों से बाजरा उगाने को प्रोत्साहन देने की बात कही है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि दुनिया ने सेहत के लिहाज से मोटे अनाजों के महत्व को समझा है, इसलिए किसानों के लिए इसे उगाना ज्यादा फायदेमंद हो गया है। ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं और दाम भी गेहूं से अधिक मिलता है। इसके महत्व को ऐसे समझा जा सकता है कि केंद्र सरकार ने 2018 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया था। नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र खाद्य कार्यक्रम के साथ आशय घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये। साझेदारी के तहत मोटे अनाज पर विशेष ध्यान दिया जायेगा और ज्ञान के आदान-प्रदान में भारत को विश्व का नेतृत्व करने में समर्थन दिया जाना है। आशय पत्र के तहत नीति आयोग और विश्व खाद्य कार्यक्रम के बीच रणनीतिक तथा तकनीकी सहयोग पर ध्यान दिया जायेगा।मोटे अनाजों (ज्वार, बाजरा, रागी, मड़ुवा, सावां, कोदों, कुटकी, कंगनी, चीना आदि मोटे अनाज) के महत्त्व को पहचान कर भारत सरकार ने 2018 में यह प्रस्ताव दिया था कि 2023 को मिलेट ईयर के रूप में मनाया जाए। ताकि मोटे अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जा सके। इस पहल को आगे बढ़ाते हुये, भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र आमसभा में 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट ईयर के रूप में घोषित करने के प्रस्ताव का नेतृत्व किया था। अब उसपर हस्ताक्षर के साथ ही आगे बढ़ने के लिए रास्ता साफ हो गया। एक्सपर्ट्स का कहना है कि दुनिया ने सेहत के लिहाज से मोटे अनाजों के महत्व को समझा है, इसलिए किसानों के लिए इसे उगाना ज्यादा फायदेमंद हो गया है।

मोटे अनाजों को प्रोत्साहन देने के लिये कई कदम उठाये गये, जिनमें उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में पोषक अनाज को शामिल करना और कई राज्यों में कदन्न मिशन की स्थापना करना शामिल है। इसके बावजूद उत्पादन, वितरण और उपभोक्ताओं द्वारा मोटे अनाजों को अपनाने से जुड़ी कई चुनौतियां कायम हैं। वितरण प्रणाली के अंतर्गत, समय आ गया है कि हम खाद्यान्न वितरण कार्यक्रमों का ध्यान 'कैलरी सिद्धांत' से हटाकर ज्यादा विविध खाद्यान्न संकुल प्रदान करने पर लगायें, जिसमें मोटे अनाज को शामिल किया जाये, ताकि स्कूल जाने की आयु से छोटे बच्चों और प्रजनन-योग्य महिलाओं की पोषण स्थिति में सुधार लाया जा सके। नीति आयोग और विश्व खाद्य कार्यक्रम का इरादा है कि इन चुनौतियों का समाधान व्यवस्थित और कारगर तरीके से किया जाये।

नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के साथ 20 दिसंबर, 2021 को एक आशय घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये हैं। इस साझेदारी के तहत मोटे अनाज को मुख्यधारा में लाने पर ध्यान दिया जायेगा और 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष होने के नाते इस अवसर पर भारत को ज्ञान के आदान-प्रदान के क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व करने में समर्थन दिया जायेगा। इसके अलावा, इस साझेदारी का लक्ष्य है छोटी जोत के किसानों के लिये सतत आजीविका के अवसर बनाना, जलवायु परिवर्तन को देखते हुये क्षमताओं को अपनाना और खाद्य प्रणाली में बदलाव लाना। प्राथिमकता प्राप्त राज्यों में मोटे अनाज को मुख्यधारा में लाने और रणनीति को आगे बढ़ाने के संदर्भ में उत्कृष्ट व्यवहारों के समुच्चय का संयुक्त विकास राज्य सरकारों, आईआईएमआर और अन्य सम्बंधित संघों की मदद से चुने हुये राज्यों में गहन गतिविधियों के जरिये मोटे अनाज को मुख्यधारा में लाने के कार्य में तेजी लाने के लिये तकनीकी समर्थन प्रदान करना।

वर्तमान में, ओडिशा सरकार के पास 2022-23 के बाद से 15 जिलों के 84 ब्लॉकों से 19 जिलों के 142 ब्लॉकों तक कार्यान्वयन का अपना क्षेत्र है। कार्यक्रम को सुचारू रुप से चलाने के लिए राज्य मंत्रिमंडल ने 2308.39 करोड़ रुपये बजट को मंजूरी दी है। ओडिशा में बाजरा की खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। बाजरा की खेती के लिए विशेष कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। इसके तहत वित्तीय सहायता दिए जाने के प्रस्ताव को भी मजूरी दी गई है। राज्य में आदिवासी क्षेत्रों में बाजरा की खेती को बढ़ावा दिए जाने को लेकर मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक आयोजित की गयी। इस बैठक में बाजरा की खेती के लिए विशेष कार्यक्रम चलाने की बात कही गई। प्रदेश में बाजरा की खेती में तेजी लाने के लिए जनजातीय क्षेत्रों में विशेष कार्यक्रम ओडिशा मिलेट मिशन के तहत राज्य सरकार द्वारा 2017 में खेत में बाजरा प्लेट में बाजरा शुरू किया गया था, ताकि बाजरा की खेती को पुनर्जीवित किया जा सके।यह कार्यक्रम राज्य सरकार, अकादमिक (एनसीडीएस) और सिविल सोसाइटी संगठनों (आरआरए नेटवर्क, आशा नेटवर्क और स्थानीय गैर सरकारी संगठनों) के बीच हुई चर्चा के बाद शुरू किया गया था। ओडिशा में बाजरा की खपत बढ़ाने की प्राथमिकता के साथ अपनी तरह का पहला कृषि कार्यक्रम है।

कार्यक्रम का उद्देश्य जलवायु अनुकूल खेती को बढ़ावा देने के साथ साथ सूक्ष्म तत्वो की कमी को दूर करने में में योगदान करना है। इसके लिए बाजरा की खेती को एक बार फिर से बड़े पैमाने पर पुनर्जीवित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम कृषि आईटी किसान अधिकारिता विभाग की निगरानी के साथ गैर सरकारी संगठनों और अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से डब्ल्यूएसएचजी/एफपीओ के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। कार्यक्रम को राज्य योजना, डीएमएफ और ओएमएडीसी के माध्यम से समर्थित किया जाता है। यह कार्यक्रम प्रदेश के सात जिलों गजपति, कालाहांडी, कंधमाल, कोरापुट, मलकानगिरी, नुआपाड़ा, और रायगडा के 30 ब्लॉकों में चालू था। इसके बाद दूसरे चरण में चार जिलों के अन्य 35 प्रखंडों में यह कार्यक्रम शुरू किया गया। इसका विस्तार 55 प्रखंडों तक हुआ। इस तरह से दूसरे और तीसरे चरण में यह कार्यक्रम 15 जिलों के 84 प्रखंडों तक पहुंच गया। वर्तमान में, ओडिशा सरकार के पास 2022-23 के बाद से 15 जिलों के 84 ब्लॉकों से 19 जिलों के 142 ब्लॉकों तक कार्यान्वयन का अपना क्षेत्र है। कार्यक्रम को सुचारू रुप से चलाने के लिए राज्य मंत्रिमंडल ने एक बड़े बजट को मंजूरी दी है। (हिफी)

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