बिजली कर्मचारियों ने आज भी रखा कार्य बहिष्कार

बिजली कर्मचारियों ने आज भी रखा कार्य बहिष्कार

मुजफ्फरनगर। ऊर्जा निगमों के निजीकरण के विरोध पर उत्तर प्रदेश के बिजलीकर्मियों के समर्थन में आज जनपद मुजफ्फरनगर में पूर्ण कार्य बहिष्कार आन्दोलन के आज दूसरे दिन जन सभा की अध्यक्षता इं० यतेन्द्र कुमार, अधिशासी अभियन्ता द्वारा की गयी। क्योंकि यह आंदोलन कल दिनांक 5 अक्टूबर 2020 को ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा एवं संयुक्त संघर्ष समिति के मध्य दूसरे चरण में शक्ति भवन लखनऊ उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड में सम्पन्न हुई। जिसमें सभी बिन्दुओं पर दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी।

बहिष्कार आंदोलन को ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा व उत्तर प्रदेश शासन ने समाप्त करने की अपील की। परन्तु सहमति पत्र पर ऊर्जा प्रबन्धन की ओर से प्रमुख सचिव ऊर्जा व अध्यक्ष उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड द्वारा ऐन वक्त पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया गया तथा बैठक से उठकर चले गये जिसके कारण यह बैठक बिना किसी निष्कर्ष के समाप्त हो गयी। इसी तारतम्य में यह कार्य बहिष्कार आंदोलन यथावत् चालु हैं एवं अग्रिम निर्णय तक चलता रहेगा।

गौरतलब है कि पूर्वाचल विद्युत वितरण निगम को तीन टुकड़ों में विभाजित कर सम्पूर्ण विद्युत वितरण का निजीकरण करने के प्रदेश सरकार के प्रस्ताव के विरोध में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र द्वारा चलाये जा रहे ध्यानाकर्षण अभियान के अनुसार प्रदेश के सभी ऊर्जा निगमों के तमाम बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर व अभियन्ता विगत 1 सितम्बर से लगातार शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं किन्तु प्रबंधन का हठवादी व दमनात्मक रवैय्या बना हुआ है जिससे बिजली कर्मियों में भारी गुस्सा है।

1. पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किसी भी प्रकार से प्रदेश व आम जनता के हित में नहीं है। निजी कंपनी मुनाफे के लिए काम करती है जबकि पूर्वाचल विद्युत् वितरण निगम बिना भेदभाव के किसानों और गरीब उपभोक्ताओं को निर्वाध बिजली आपूर्ति कर रहा है। निजी कंपनी अधिक राजस्व वाले वाणिज्यिक और औधोगिक उपभोक्ताओं को प्राथमिकता पर बिजली देगी जो ग्रेटर नोएडा और आगरा में हो रहा है। ग्रेटर नोएडा और आगरा में निजीकरण की विफलता को देखते हुए पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव हर हाल में रद्द किया जाना चाहिए।


2. निजी कंपनी लागत से कम मूल्य पर किसी उपभोक्ता को बिजली नहीं देगी। अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को पॉवर कारपोरेशन घाटा उठाकर बिजली देता है जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है। अब निजीकरण के बाद स्वाभाविक तौर पर इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी।

3. उत्तर प्रदेश में बिजली की लागत का औसत रु 07.90 प्रति यूनिट है और निजी कंपनी द्वारा एक्ट के अनुसार कम से कम 16 मुनाफा लेने के बाद रु 09.50 प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली किसी को नहीं मिलेगी। इस प्रकार एक किसान को लगभग 8000 रु प्रति माह और घरेलू उपभोक्ताओं को 8000 से 10000 रु प्रति माह तक बिजली बिल देना होगा। निजी वितरण कंपनियों को कोई घाटा न हो इसीलिये निजीकरण के प्रस्ताव के अनुसार पूर्वाचल में तीन वर्ष में ट्यूबवेल के फीडर अलग कर ट्यूबवेल को सौर ऊर्जा से जोड़ देने की योजना है। अभी सरकारी कंपनी घाटा उठाकर किसानों और उपभोक्ताओं को बिजली देती है। निजीकरण के प्रस्ताव के अनुसार सरकार निजी कंपनियों को 05 साल से 07 साल तक परिचालन व अनुरक्षण हेतु आवश्यक धनराशि भी देगी। साथ ही निजी कंपनियों को विद्युत वितरण सौंपने के समय तक के सभी घाटे का उत्तरदायित्व पॉवर कारपोरेशन अपने ऊपर ले लेगा जिससे निजी कंपनियों को क्लीन स्लेट मिले। केन्द्र सरकार द्वारा 20 सितम्बर को जारी निजीकरण के बिडिंग दस्तावेज में इन सभी बातों का स्पष्ट उल्लेख है।

4. निजीकरण और फ्रेन्चाइजी के जरिये निजी क्षेत्र को विद्युत् वितरण सौंपने का प्रयोग उत्तर प्रदेश के लिए नया नहीं है, यह ग्रेटर नोएडा और आगरा में पूरी तरह विफल रहा है। पूरे देश में भी ऐसे प्रयोग विफल हो चुके है और वाछित परिणाम न दे पाने के कारण अन्य प्रदेशों में लगभग सभी फ्रेंचाइजी करार रद्द कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश में भी आगरा में टोरेंट पावर कंपनी की लूट चल रही है और कंपनी करार की कई शर्तो का उल्लंघन कर रही है। सीएजी ने भी टोरेंट कंपनी के घोटाले का पर्दाफाश किया किन्तु टोरेंट की ऊंची पहुंच होने के कारण कोई कार्यवाही नहीं हुई। वर्तमान में पॉवर कारपोरेशन घाटा उठाकर आगरा में टोरेन्ट कम्पनी को रु 04.45 प्रति यूनिट पर बिजली दे रहा है जबकि आगरा में बिजली का औसत टैरिफ रु 07.65 प्रति यूनिट है इस प्रकार निजीकरण से पॉवर कारपोरेशन को अरबों खरबों रु का घाटा हो रहा है जबकि टोरेन्ट कम्पनी भारी मुनाफा कमा रही है। टोरेन्ट कम्पनी ने पॉवर कारपोरेशन का 2500 करोड़ रु से अधिक का राजस्व का बकाया दवा रखा है और 10 साल बाद भी नही दिया है। निजीकरण का यही प्रयोग अब पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में दोहराया जा रहा है जिससे बिजली कर्मियों में भारी रोष है। 5. यह कि पूर्वाचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किये जाने की दशा में निगम में कार्यरत कार्मिकों की सेवाशर्ते बुरी तरह प्रभावित होंगी जिससे उनके भविष्य पर बुरा प्रभाव पड़ने के साथ ही उनका आर्थिक, मानसिक एवं सामाजिक शोषण होने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता जोकि विद्युत सुधार अधिनियम -1999 एवं विद्युत अधिनियम 2003 के आर्टिकल 23 (7) में उल्लिलिखत व्यवस्थाओं का उल्लंघन होने के साथ ही वर्ष 2000 में तत्कालीन उप्ररावि परिषद के विघटन के समय सरकार, ऊर्जा प्रबन्धन एवं विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र के साथ लिखित समझौते कि 'राज्य विद्युत परिषद के विघटन के पश्चात कार्मिकों की सेवा शर्ते कदापि कमतर नहीं होंगी' का खुला उल्लंघन होगा।

अधिशासी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बिजलीकर्मियों के समक्ष रखने का अनुरोध किया कि निजीकरण किसी भी प्रकार जनहित में नहीं है अतः इसे तत्काल निरस्त किया जाये। अधिशासी अभियंता ने कहा कि कोविड -19 महामारी के बीच प्रदेश में निर्वाध विद्युत आपूर्ति बनाये रखने वाले विजली कर्मियों पर सरकार भरोसा रखकर सरकार सुधार के कार्यक्रम चलाए जिसमें हम सदा की तरह पूर्ण सहयोग करेंगे।

इस मौके पर समस्त अधीक्षण अभियन्ता, अधिशासी अभियन्ता, सहायक अभियन्ता, अवर अभियन्ता, लेखाकार, लिपिक संवर्ग, टी0 जी0-2 एवं चतुर्थ श्रेणी संवर्ग ने प्रतिभाग किया।

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