40 सालों मे मलिन बस्ती मे पहुंचने वाली पहली जिलाधिकारी सैल्वा कुमारी जे

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मुज़फ्फ़रनगर । सिटी मे मेरठ रुड़की रोड से सटे गहरा बाग़ मे कुछ लोग झोपड़ियां डाल पिछले चालीस वर्षो से रह रहे है इस बात से अधिकतर शहरवासी अंजान है।






बोर्ड से उतरी पुरानी फ्लैक्स जो नेताओं के अभिनन्दन या त्योहारों की शुभकामनाओं के बाद किसी काम की नही रहती वो इन टूटी फूटी झोपड़ियों और कच्ची दीवारों से बने कमरो पर छत का काम करती है।सड़क के नाम पर मिट्टी का रास्ता जिसे इन ग़रीबों के नंगे पैरो ने चालीस सालों मे चलते चलते समतल कर दिया है लेकिन बरसात इनकी मेहनत उस समय बर्बाद कर देती है जब उस रास्ते पर छोटे बच्चे बारिश के कारण फिसल कर गिरने लगते है फ्लैक्स मे हुए छेद के ज़रिये पानी भी बरसात की चुग़ली करता नही थकता, उस वक्त इन ग़रीब आंखों के पास आसमान की तरफ शिकायत भरी नज़रो से देखने के अलावा और कोई चारा नही होता जैसे ऊपर वाले से अपने हिस्से मे आई इस लाचारी का सवाल कर रहे हो कि क्यों सिर्फ़ हमारे ही हिस्से मे ये सब क्यों लिखा गया।





दरअसल ये लोग जिस भूमि पर अपने कच्चे मकान बनाकर पिछले चालीस सालों से रह रहे है बदकिस्मती से उस ज़मीन के भी एक नही दो दावेदार है जो अपने अपने हक के लिये हाईकोर्ट तक जा चुके है जिस दिन इस भूमि के स्वामित्व का फैसला होगा उस दिन इन गरीबों के ये ठिकाना भी अपना नही रहेगा।





इस बस्ती मे रहने वाले लोगो का मूल रोज़गार सड़क पर पड़े कूड़े को बीनकर वो स्क्रेप निकालना है जिसे बेचकर ये लोग दो जून की रोटी का इंतज़ाम कर सके।

जिसका कोई नही उसका तो ख़ुदा है यारों

सेक्युलर फ्रंट व पैग़ाम-ए-इंसानियत ने इस बस्ती मे रहने वालो की पीड़ा नगर मजिस्ट्रेट अतुल कुमार के माध्यम से ज़िलाधिकारी मुज़फ्फ़रनगर तक पहुंचाई तो डीएम सैल्वा कुमारी जे ने फौरन इसका संज्ञान लेते हुए कल शाम नगर मजिस्ट्रेट के साथ इस मलिन बस्ती का दौरा किया और वहां रहने वाले लोगो से रूबरू होकर संवाद स्थापित किया।





जहां महिलाओं ने ज़िलाधिकारी को बताया कि आप चालीस सालों मे इस बस्ती मे आने वाली पहली अधिकारी है आज से पहले कभी किसी अधिकारी ने हमारी सुध नही ली,उन्होंने बताया कि बस्ती मे पीने के पानी के नाम पर एक सरकारी हैंडपम्प है इसके बाद पडोस मे रहने वाले लोगो से मांगकर ही पानी का इंतज़ाम हो पाता है।यहां रहने वाली महिलाएं सरकारी पेंशन से भी वंचित है अधिकतर को इसकी जानकारी भी नही है और दो चार महिलाओं ने अगर आवेदन किया भी तो उन्हे मायूसी ही हाथ लगी।


शौचालय की आवश्यकता है पर बना नही सकते,शिक्षा का स्तर शुन्य के बराबर है अधिकतर युवा बेरोजगार है सरकारी अस्पताल दूर होने के कारण वहां पहुंच नही पाते, मतलब ये कि सरकारी सुविधाए इन लोगो के करीब होकर भी नही गुज़री।


बहरहाल ज़िलाधिकारी ने इन लोगो की ज़रूरतो और परेशानी को इनके बीच पहुंचकर स्वयं नोट किया और इन्हे हर संभव मदद का आश्वासन भी दिया जिस कारण इन ग़रीबों की आंखों मे उम्मीद की किरण जागी है और जिलाधिकारी सैल्वा कुमारी जे का इन ग़रीबो के बीच पहुंचना इस बात का साफ संकेत है कि उनकी नज़र हाशिये पर खड़े आखिरी व्यक्ति तक है जिसे सुविधा पहुँचाना वो अपना फर्ज समझती है।

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