कमाल के कलक्टर-सुरेन्द्र सिंह....दीवार से गिरे, चोटिल हुए और बचा ली बच्चों की जान

आजकल सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो कार्य के प्रति उनकी दिवानगी का साक्ष्य बनकर जन जन तक पहुंच रही है।

Update: 2019-09-22 11:54 GMT

लखनऊ। ब्यूरोक्रेसी में जांबाज, जुझारू और जुनूनी अफसरों की पूरी जमात है। इनमें मानवीय संवेदनाओं के साथ काम करने वाले अफसरों की भी कमी नहीं है। किसी भी संकट में शासन की योजनाओं को पीड़ितों तक पहुंचाना सभी अफसरों की जिम्मेदारी रहती है, लेकिन इसके लिए यदि को दिन रात जुझारूपन के साथ काम करे तो ये उसका दिवानापन ही कहलायेगा।



जनता के प्रति मानवीय दृष्टिकोण और कानून के दायरे में रहकर काम करने वाले आईएएस अफसर सुरेन्द्र सिंह भी ऐसे ही दीवाने हैं। वह चुनौतियों को स्वीकार करने में सबसे आगे रहते हुए जिम्मेदारियों को भी खुद अपने सिर पर उठाने की क्षमता रखते हैं। यही कार्यप्रणाली है कि जो उनको दूसरे अफसरों से कुछ जुदा रखती है।




आजकल सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो कार्य के प्रति उनकी दिवानगी का साक्ष्य बनकर जन जन तक पहुंच रही है। इस वीडियो में वह वाराणसी में भयंकर बाढ़ की चपेट में फंसे लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इस दौरान अचानक एक दीवार के दरक जाने से वह भी गिरते दिखाई देते हैं। कोई भी अफसर इस तरह के जोखिम उठाने से खुद को काफी दूर रखता है, लेकिन जिस प्रकार से वाराणसी के जिलाधिकारी के पद पर रहते हुए आईएएस सुरेन्द्र सिंह इन दिनों बाढ़ पीड़ितों तक पहुंचने में जुटे है, वह विरले ही दिखने को मिलता है। एनडीआरएफ, पीएसी और पुलिस के जवानों का पुरा अमला सुरक्षा उपकरणों के साथ था, लेकिन डीएम सुरेन्द्र सिंह बिना कोई सुरक्षा उपकरण प्रयोग किये ही एक छत पर बाढ़ में फंसे परिवार तक राहत सामग्री को पहुंचाने के लिए खुद दीवार पर चढ़ गये। ये उनकी कार्यप्रणाली और जुनून को दर्शाता है।

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल होने के बाद खबर आयी, वाराणसी में बाढ़ पीडितों को राहत सामग्री बांटने के दौरान डीएम सुरेंद्र सिंह गुरुवार की दोपहर दीवार के साथ नीचे गिर गये। हादसे के दौरान जिलाधिकारी भी स्वयं दीवार के साथ बाढ़ के पानी में जा गिरे वहीं इस दौरान एनडीआरएफ के जवानों ने मदद कर सभी को तुरंत निकाल लिया। हादसे में किसी को गंभीर चोट न लगने से प्रशासन ने राहत की सांस ली। यह एक सामान्य खबर हो सकती है, लेकिन एक ब्यूरोक्रेट की कार्यप्रणाली की नजर से देखा जाये तो यह हादसा एक आईएएस अफसर की जनसरोकार के प्रति एक संवेदना को दर्शाता है। 2005 बैच के आईएएस अफसर सुरेन्द्र सिंह अपने काम से देश और दुनिया में अलग पहचान रखने वाले ब्यूरोक्रेट हैं। वैसे तो उनके अनेक कार्य चर्चाओं में रहे हैं, लेकिन दुनिया भर में वह तब ज्यादा चर्चा पा गय, जबकि लोकसभा चुनाव 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी का दायित्व निभा रहे आईएएस सुरेन्द्र सिंह के कोर्ट में उनके सामने खड़े हुए नजर आये। यह तस्वीर अविस्मरणीय बनकर रह गयी है। आईएएस सुरेन्द्र सिंह की शासन में लोकप्रियता को इसी से समझा जा सकता है कि उनको मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाले जनपद वाराणसी में जिलाधीश की जिम्मेदारी सौंपी। मुजफ्फरनगर जैसे जनपद में अखिलेश यादव सरकार के दौरान कुशल प्रशासक के रूप में कार्य करने वाले सुरेन्द्र सिंह वाराणसी में पीएम मोदी और सीएम योगी की प्राथमिकता पर खरे साबित हो रहे हैं।




अब ताजा मामला वाराणसी में भयावह बाढ़ का है। बाढ़ की चपेट में वाराणसी का देहात पीड़ित है। ऐसे में आईएएस सुरेन्द्र सिंह प्रतिदिन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर वहां पर फंसे लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने में जुटे हुए हैं। इस दिनों वाराणसी में गंगा और वरुणा नदियों में भारी उफान जन जीवन को तबाही के मोड़ तक ले आया है। प्रशासन भी पीड़ितों तक पहुंचने और उनको सुरक्षित निकालने में जुटा है। बीते 19 सितमबर 2019 को वरुणा नदी के किनारे बाढ़ में डूबे इलाकों में  प्रत्येक दिन डीएम सुरेंद्र सिंह एसएसपी आनंद कुलकर्णी संग किसी न किसी क्षेत्र में बाढ़ पीडितों के बीच राहत सामग्री बांटते हैं। उस दिन भी दोनों अधिकारी पीएसी व एनडीआरएफ जवानों के साथ बाढ़ प्रभावित क्षेत्र कोनिया जा पहुंचे। बाढ़ पीडित राजकुमार सेठ का मकान पानी में पूरी तरह डूबा है। मकान की छत पर परिवार के सदस्य बेहाल अवस्था में रह रहे हैं। इस परिवार को देखकर बोट पर एनडीआरएफ के जवानों के साथ सवार डीएम सुरेन्द्र सिंह ने मकान के करीब बोट को रुकवाया और इस परिवार तक राहत सामग्री पहुंचाने के लिए खुद ही दीवार के सहारे डीएम सुरेन्द्र सिंह छत के करीब पहुच गये। डीएम सुरेन्द्र सिंह करीब तीन फीट ऊंची दीवार की दूसरी साइड पर खड़े होकर बोट से राहत सामग्री कापैकेट पकड़ ही रहे थे कि यह दीवार भरभराकर गिर गई। जिलाधिकारी ने संभलने की बहुत कोशिश की किंतु संतुलन नहीं बना सके और वह भी सीधे मोटर बोट में गिर गए। मलबा के साथ डीएम के गिरते ही एसएसपी समेत अन्य पुलिसकर्मी सकते में आ गए। आईएएस के गिरने के बाद अक्सर अपनी जान की परवाह पड़ जाती है, लेकिन सुरेन्द्र सिंह ने गिरने के बाद जो जुझारूपन और तेजी दिखाते हुए एक अभिभावक की तरह खुद को पेश किया, उसकी पूरे प्रदेश में सराहना हो रही है। बोट पर ऊंचाई से गिरकर चोटिल होने के बाद भी जिलाधिकारी सुरेन्द्र सिंह ने गजब की फुर्ती दिखाई। खुद को लगी चोट की परवाह किए बिना तुरंत उठे और बोट में गिरे मलबे को निकालने में जुट गए क्योंकि बाढ़ में फंसे दो बच्चे भी उसी बोट में सवार थे। डीएम ने तेजी से ईंटों को वहां से फेंकना शुरू किया तो एनडीआरएफ के जवान भी मदद में जुट गये। सभी हैरान थे कि गिरकर चोटिल होने के बाद भी इस कलक्टर ने कमाल का साहस और सूझबूझ दिखायी। उनकी तेजी और संवेदनशीलता का ही यह असर था कि बोट पर बच्चों को भी ज्यादा चोट नहीं आयी। उनको अस्पताल पहुंचाया गया। एसएसपी आनंद कुलकर्णी ने भी इस कलक्टर को हादसे के बाद घर जाकर उपचार कराने और आराम करने की सलाह दी, लेकिन सुरेन्द्र सिंह ने पूरी दृढ़ता के साथ इससे इंकार कर जनसरोकार को सर्वोपरि रखा।



इस हादसे में चोट लगने के बाद भी जिलाधिकारी आवास पर जाने की बजाए कलक्टर सुरेन्द्र सिंह बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित ढाब इलाके में निरीक्षण करने पहुंच गए। वहां भी पूरे जोश के साथ उन्होंने पीड़ितों को राहत सामग्री बांटी। इसके बाद जब वह आवास पर लौटे तो वहां पर दूसरे अफसरों ने चिकित्सकों की पूरी टीम को तैयार कर रखा था, इन चिकित्सकों ने उनके स्वास्थ्य का परीक्षण किया। इस दौरान भी सुरेन्द्र सिंह प्रसन्नचित्त नजर आये। उनके चेहरे पर हादसे के भय के बजाये पीड़ितों तक मदद पहुंचाने का संतोष साफ झलक रहा था। लम्बी भागदौड़ के बाद भी उनके चेहरे पर शिकन नहीं थी, पीड़ितों को मदद करने के बाद क्षेत्र में दौरे पर निकल गये।




शाम को विभागीय समीक्षा की। हादसे को लेकर जब उनकी प्रतिक्रिया पूछी गयी तो उन्होंने कहा कि समय के अनुकूल काम करना चाहिए, यह संयोग की बात है कि हादसा हो गया है लेकिन इस के मामले से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि आगे काम करना चाहिए। कलक्टर ने कमाल की बात कही, कि इस हादसे में गिरने के बाद जब बच्चों ने घबराहट में चीखना शुरू किया तो उनको अपने गिरने और चोट लगने से से ज्यादा बोट में सवार बच्चों के जीवन की चिंता थी। मैं संतुष्ट हूं कि हमने बच्चों को सुरक्षित बचाया।

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