हमें मुज़फ्फरनगर गुड़ के लिए भौगोलिक चिन्ह या ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जी.आई) टैग लेना चाहिए
मुजफ्फरनगर भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित गुड़ प्रोडक्ट्स के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देगा।
मुजफ्फरनगर गुड़ के लिए भौगोलिक चिन्ह या ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जी.आई) टैग लेना चाहिए
डा.आलोक गुप्ता
विभागाध्यक्ष (मैकेनिकल इंजीनियरिंग)
श्रीराम ग्रुप ऑफ़ काॅलेजेज
क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों किसी उत्पाद के साथ किसी विशिष्ट क्षेत्र का नाम लिखा जाता है.... जैसे कि बीकानेरी भुजिया, आगरा का पेठा, कांचीपुरम की रेशमी साड़ी, अल्फांसो मैंगो, नागपुर ऑरेंज, कोल्हापुरी चप्पल, मुजफ्फरपुरी लीची, बंगाली रोसोगुल्ला आदि। क्या आप जानना चाहते हैं कि क्यों विशिष्ट क्षेत्र का नाम विशिष्ट उत्पाद के साथ लिया जाता है?
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन उत्पादित वस्तुओं की विशेष गुणवत्ता या प्रतिष्ठा या अन्य विशेषताओं की मानकता किसी खास विशिष्ट क्षेत्र के नाम से संदर्भित की जाती है, जिसको भौगोलिक चिन्ह या संकेत (जी.आई.टैग) के नाम से जाना जाता है।
जी.आई.टैग क्या है?
यदि सरल शब्दों में समझें तो जी.आई टैग एक प्रकार की मोहर है जो किसी भी प्रोडक्ट के लए प्रदान की जाती है। इस मुहर के प्राप्त हो जाने के बाद पूरी दुनियां में उस प्रोडक्ट को महत्व प्राप्त हो जाता है। साथ ही साथ उस क्षेत्र को सामूहिक रूप से इसके उत्पादन का एकाधिकार प्राप्त हो जाता है। लेकिन इसके लिए शर्तें हैं। उस वस्तु का उत्पादन या प्रोसेसिंग उसी क्षेत्र में होना चाहिए, जहां के लिए टैग किया जाना है।
जी.आई.टैग और ट्रेड मार्क मे बहुत फर्क है। ट्रेड मार्क तो निर्माताओं के बीच अन्तर बताता है, जबकि जी.आई.टैग उस उत्पाद की अपनी विशिष्ट पहचान को अभिव्यक्त करता है।
केरल प्रदेश के मारायुर गुड़ को जी.आई.टैग (भौगोलिक चिन्ह/ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग) मिलाः
केरल प्रदेश में एक स्थान है मारायुर। इस गांव में माथुवा जाति के आदिवासी 'मारायुर गुड़' को तैयार करते हैं। इस गुड़ का केरल के मन्दिरों में धार्मिक आयोजनों में प्रयोग किया जाता है। हाल ही में 5 मार्च 2019 को मारायुर गुड़ को जी.आई.टैग मिल गया। इससे वैश्विक बाजार में इस गुड़ की स्वीकार्यता में न केवल इजाफा होगा, बल्कि मारायुर गुड़ निर्माताओं को बढ़ी हुई कीमतें भी मिलने लगेंगी।
जी.आई.टैग से मुजफ्फरनगर को लाभः जी.आई.टैग (भौगोलिक संकेत) मुजफ्फरनगर की समृद्ध संस्कृति और सामूहिक बौद्धिक विरासत का हिस्सा बनेगा। मुजफ्फरनगर गुड़ का जी.आई.टैग गुणवत्ता का आश्वासन देता है। मुजफ्फरनगर गुड़ का जी.आई.टैग दर्शाता है कि यह गुड़ उत्पाद मुजफ्फरनगर से आता है। अधिकार का लाभ समुदाय/ सामुदायिक संघ और रजिस्टर्ड अपयोगकर्ताओं को मिलेगा। मुजफ्फरनगर गुड़ का जी.आई.टैग बाजार के दायरे को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। इससे निर्यात और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा और इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह अप्रत्यक्ष रूप से सतत विकास की ओर जायेगा। जी.आई.टैग मिलने के बाद अन्य लोगों द्वारा इसका अनधिकृत प्रयोग रूक जायेगा। यह मुजफ्फरनगर भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित गुड़ प्रोडक्ट्स के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देगा। इससे मुजफ्फरनगर के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार को बढ़ावा मिलने के साथ ही गरीब किसानों और कामगारों को भी संरक्षण प्राप्त होगा। इससे सबसे निचले स्तर के लोग भी लाभान्वित होंगे, जबकि ज्यादातर अन्य पहल में लाभ ग्रास रूट लेवल पर नहीं मिल पाता। जी.आई.टैग मुजफ्फरनगर गुड़ को बढ़ावा देकर एक आशा बहाल कर सकता है। इससे गन्ना कृषक और कृषि दोनों का विकास सम्भव है। जी.आई.टैग गुणवत्तापूर्ण गुड़ का उत्पादन सुनिश्चित करेगा। स्थानीय गुड़ की घरेलू बाजार के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी कीमतों मे वृद्धि होगी। इस तरह निर्यात में भी वृद्धि होगी।
क्या है यह जी.आई.एक्टः
जी.आई.एक्ट को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स रजिस्ट्रेशन एंड प्रोडक्शन एक्ट 1999 भी कहते हैं। भारत में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के सदस्य होने के नाते ज्योग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स पंजीकरण और संरक्षण अधिनियम 1999 को लागू किया गया। यह 15 सितम्बर 2003 से लागू हुआ। इस अधिनियम को डब्ल्यू.टी.ओ. के 'ट्रेड रिलेटिड इंटेलेक्चुअल प्राॅपटी राइट्स' समझौते का पालन करने के लिए अधिनियमित किया गया। इस अधिनियम को कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट डिजाइन एंड ट्रेडमाक्र्स द्वारा प्रशासित किया जाता है। यह चैन्नई स्थित ऑफिस के माध्यम से जी.आई.टैग प्रदान करता है।
जी.आई.टैग का भारत में कदमः
भारत मे सबसे पहले दार्जीलिंग चाय को 2004 में जी.आई.टैग दिया गया। इसके बाद एक के बाद अनेक एप्लीकेशन आती गयी और मानकों के आधार पर उन्हें जी.आई.टैग प्रदान किया जाता रहा। ऐसे कई आवेदनों को मान पूरा नहीं कर पाने की स्थिति में भौगोलिक संकत सूची में स्थान नहीं दिया गया। भौगोलिक संकेत का पंजीकरण 10 वर्षों तक के लिए ही होता है। उसके बाद इसका नवीनीकरण करवाया जाना आवश्यक है, अन्यथा यह समाप्त हो जाता है। जी.आई.टैग का आवेदन शुल्क 5000 रूपये है। भारत में सबसे पहले दार्जिलिंग चाय को जी.आई.टैग प्रदान किया गया था। इसके बाद इस क्षेत्र (दार्जिलिंग का वह विशेष क्षेत्र) से बाहर उत्पादन किये गये चाय उत्पाद पर ''दार्जिलिंग टी'' का टैग नहीं लगाया जा सकता। इसके अलावा अगर उत्पाद को जी.आई.टैग के मानकों के आधार पर नहीं बनाया गया है तो भी उत्पाद पर ''दार्जिलिंग टी'' का टैग नहीं लगाया जा सकता। इस तरह कहा जा सकता है कि जिस समूह ने इस उत्पाद के लिए जी.आई.टैग प्राप्त किया है, सम्बन्धित उत्पाद के संरक्षण का लाभ उसी को मिलता है। भौगोलिक संकेतक प्रोडक्ट के लिए कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
दस्तावेजी साक्ष्यों पर निर्भरताः भारत में भौगोलिक संकेत सूची में नाम दर्ज करने का कार्य ''ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री, चेन्नई'' करता है और इसके लिए विभिन्न मानदंडों में से एक मानदंड यह है कि किसी उत्पाद को जी.आई.टैग के रूप में दर्ज करने के लिए उसके उत्पत्ति से सम्बन्धित साक्ष्य का होना अनिवार्य है। जबकि भारत के कई हिस्सों में उत्पत्ति से सम्बन्धित साक्ष्य लिखित रूप से उपलब्ध नहीं हैं, वह केवल मौखिक रूप में ही है।
मुजफ्फरनगर गुड़ के जी.आई.टैग के लिए उचित कदमः
मुजफ्फरनगर गुड़ के जी.आई.टैग हेतु आगे के लिए उपयुक्त कदम को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से देखा जा सकता हैः
1. मुजफ्फरनगर गुड़-उत्पाद की वैद्यता स्थापित करने के लिए स्पष्ट भौगोलिक सीमाओं को परिभाषित किया जाना चाहिए। उस क्षेत्र को चिन्हित करना चाहिए जहां गुणवत्ता सर्वोत्तम हो, जहां जैविक गुड़ का पूरे मानकों का पालन करते हुए गुड़ का निर्माण पारम्परिक रीति से हो रहा हो। नासिक का अंगूर लगभग 50 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में मिट्टी की खासियत के कारण जी.आई.टैग पा सका है। उस खास क्षेत्र के अंगूर का स्वाद विशिष्टता लिए हुए है।
2. उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण गुड़-उत्पाद और गुड़-उत्पादकों को सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करने के लिए सभी हितधारकों के मध्य संचार का उचित चैनल विकसित करना होगा।
3. बिना आपसी विद्वेष के एसोसिएशन को सभी का प्रतिनिधित्व करना होगा। नासिक के अंगूर का उदाहरण है, वहां कौन आवेदन करे जैसे मुद्दे पर कोई सहमति न बन पाने के कारण कई वर्षों तक एप्लीकेशन फाइल नहीं की गई।
4. जी.आई.टैग प्राप्त करने के लिए मुजफ्फरनगर में गुड़ की उत्पत्ति से सम्बन्धित साक्ष्यों को एकत्रित कर पाना अत्यन्त चुनौतीपूर्ण है। मुजफ्फरनगर गुड़ महोत्सव के बाद यह कार्य मुश्किल नहीं होगा।
5. मारायुर गुड़ के लिए फाइल की गई एप्लीकेशन नम्बर 613 का गहन अध्ययन करने के बाद मुजफ्फरनगर गुड़ के लिए भी उसी प्रकार एप्लीकेशन तैयार करनी होगी। इसके लिए एप्लीकेशन फाॅर्म जीएल-1 भरना होगा। इसके लिए कृषि विश्वविद्यालय की आई.पी.आर. सेल का सहयोग भी लिया जा सकता है।
6. जी.आई.टैग के गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने के लिए एक टेस्टिंग लैब भी मेंटेन रखनी होगी।
7. जी.आई.टैग के लिए आवेदन करने के बाद घरेलू और अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में मुजफ्फरनगर गुड़ उत्पादों की वाणिज्यिक संभावना के बारे में उचित आंकलन किया जाए। इसके अलावा गुड़-उत्पादों के पंजीकरण व इसकी आपूर्ति श्रंखला में सम्मिलित समुदायों पर पड़ने वाले सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का आंकलन किया जाये। इससे वास्तविक रूप से जी.आई.टैग का लाभ प्राप्त होगा।
आवेदक कौन होः जी.आई.टैग लेने के लिए गुड़ के उत्पादन, व्यापार इत्यादि से जुड़ी हुई कोई एसोसिएशन या संस्थान आवेदन कर सकता है। मारायुर गुड़ के लिए फाइल की गई एप्लीकेशन नम्बर 613 में आवेदक एसोसिएशन का नाम 'अंचनाडु कारिम्बु उलपधाना विपनना संघम, मरयूर' है। एसोसिएशन ने केरल कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अनुसंधान प्रयोगशाला स्थित 'इंटेलेक्चुअल प्राॅपर्टी राइट्स सैल' के निर्देशन में आवेदन किया था।
एप्लीकेशन में क्या आएगा?
आवेदक का नाम, पता, टाइप ऑफ गुड्स में लिखा जायेगाः जैग्गरी (शर्करा), क्लास-30, विशिष्टता, वस्तु (गुड्स) का विवरण, उत्पादन का भौगोलिक क्षेत्र और मानचित्र, उत्पत्ति का प्रमाण (ऐतिहासिक अभिलेख), उत्पादन की विधि, विशिष्टता (यूनिकनेस), निरीक्षण निकाय (इंस्पेक्शन बाॅडी)।
इंस्पेक्शन बाॅडी में कौन शामिल होगाः
मारायुर के गुड़ के जी.आई.टैग के लिए इंस्पेक्शन बाॅडी में विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि थे। जिनमें प्रमुख रूप से शामिल थेः अनुसंधान निदेशक (केरल कृषि विश्वविद्यालय), प्रधान कृषि अधिकारी (इडुक्की जिला, केरल), समन्वयक, आई.पी.आर. सेल (केरल कृषि विश्वविद्यालय), उपनिदेशक कृषि (देवीकुलम ब्लाॅक इडुक्की), मारायुर ग्राम पंचायत के अध्यक्ष, कंठललूर ग्राम पंचायत के अध्यक्ष, कृषि अधिकारी (कृष्णभवन मारायुर), अध्यक्ष एवं सचिव (अंचनाडु कारिम्बु उलपधाना विपनना संघम, मारायुर), एमडी, मपको (मारायुर कृषि उत्पाद, सचिव, एमएएचडी, मारायुर कम्पनी), 3 किसान प्रतिनिधि (मारायुर), अध्यक्ष, मारायुर हिल्स एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट सोसाइटी, मारायुर।
अन्त मेंः क्या यह विचारणीय विषय नहीं है कि मुजफ्फरनगर गुड़ के लिए जी.आई.टैग अर्थात ''भौगोलिक चिन्ह संकेत'' की एप्लीकेशन फाइल की जाये, जिससे आगरे का पेठा, मेरठ की कैंची, बनारसी साड़ी की भांति मुजफ्फरनगर गुड़ को भी अपनी वैश्विक पहचान और समुचित आर्थिक लाभ मिलना सम्भव हो पाए।
इस दिशा में यदि मुजफ्फरनगर जिला प्रशासन 'गुड़ महोत्सव' आयोजन की भांति पहल करे और गुड़ से जुड़े सभी हितधारकों के मध्य सहमति बने, तो मुजफ्फरनगर गुड़ के लिए जी.आई.टैग हासिल करना बहुत कठिन नहीं। अभी नहीं तो फिर कब !!