सूचना देने में बहानेबाजी बर्दाश्त नहीं: हर्षवर्धन शाही

राज्य सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही ने बताया कि जनपदद मुजफ्फरनगर में 343 मामलों पर आयोग में सुनवाई हो रही है। उन्होंने बताया कि यूपी में 2006 से 2019 के बीच 432 हजार आरटीआई के मामले दर्ज हुए हैं, जिसमें से 326 हजार मामलों का निस्तारण किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में आरटीआई मामलों का निस्तारण प्रतिशत वर्तमान में 91 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में 11930 मामलों में जनसूचना अधिकारियों या अपीलीय अधिकारियों पर जुर्माना किया गया है। उन्होंने बताया कि आयोग में उनके द्वारा 60-70 केस की सुनवाई प्रतिदिन की जाती है।

Update: 2019-06-20 11:02 GMT

मुजफ्फरनगर। राज्य सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही ने जन सूचना अधिकारियों तथा प्रथम अपीलीय अधिकारियों को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एवं उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली-2015 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में मुख्यरूप से हिदायत दी कि वे सूचना प्रदान करने में ज्यादा सोचे, सूचना नहीं देने के बारे में नहीं। इस दौरान उन्होंने सूचना अधिकारियों व प्रथम अपीलीय अधिकारियों को सूचना अधिनियम की बारीकियों के बारे में विस्तार से बताया। प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन्होंने शंकाओं का समाधान करते हुए बताया कि प्रदेश में 20 हजार जनसूचना अधिकारी व 7 हजार अपीलीय अधिकारी नियुक्त किये गये है। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण के दो राऊण्ड पूरे होने के बाद तीसरे राऊण्ड़ का प्रशिक्षण शुरू किया गया है।

कलेक्ट्रेट पंचायत भवन में आयोजित जनसूचना अधिकारियों व प्रथम अपीलीय अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि सभी विभाग अपने-अपने कार्यालयों में प्रारूप तीन के तहत आरटीआई आवेदन पत्र का रजिस्टर बनाएं। उन्होंने जन सूचना अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकारियों से कहा कि उनका प्रथम और प्रमुख दायित्व सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त प्रार्थना पत्रों पर 30 दिन के अंदर सूचना देना है। सूचना देने में किसी तरह की बहानेबाजी बर्दाश्त नहीं होगी। उन्होंने कहा कि ईमानदारी से काम करने वालों को आरटीआई से डरने की जरूरत नहीं। एक प्रश्न के जवाब में श्री शाही ने कहा कि अधिकारी केवल विधिक आधार पर ही आवेदक को सूचना देने से मना कर सकता है।



राज्य सूचना आयुक्त ने कहा कि सूचना प्राप्त करने वाले आवेदक को अपना नाम, पिता या पति का नाम एवं पत्राचार का पूर्ण पता देना होगा। साथ ही आवेदन के साथ 10 रुपये की धनराशि नगद जमा करने की रसीद, डिमांड ड्राफ्ट, चेक, पोस्टल आर्डर संलग्न करना होगा। धारा 8(1) के तहत ऐसी सूचना, जिससे भारत की सुरक्षा, अखंडता और हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े, जिससे न्यायालय की अवमानना होती हो। संसद या राज्य विधान मंडल के विशेषाधिकारों का हनन होता हो वह नहीं दी जाएगी।

प्रशिक्षण कार्यक्रम के बाद आयोजित प्रेसवार्ता में राज्य सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम एक क्रांतिकारी अधिनियम है। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम ने आम व्यक्ति को सशक्त बनाया है। सूचना का अधिकार अधिनियम और नियमावली ने शासन एवं प्रशासन की कार्य प्रणाली में जवाबदेही, पारदर्शिता के साथ-साथ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया है। राज्य सूचना आयुक्त ने दावा किया कि प्रशिक्षण कार्यक्रमों से सूचना प्रदान करने का प्रतिशत बढ़ा है।

पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने कहा कि आयोग में दो तरह की मामले दर्ज होते हैं। नम्बर एक जिसमें आवेदक द्वारा सूचना प्राप्त करने की अपील की जाती है, दूसरे मामले में आवदेक द्वारा समय से सूचना नहीं देने पर दाषियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की जाती है, जिसे कार्यवाही की श्रेणी में रखा जाता है।

उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आवेदक विलंब से सूचना और भ्रामक या गलत सूचना मिलने पर प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास अपील करें। फिर भी जवाब नहीं मिलने पर उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के समक्ष अपील करें। राज्य सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही ने कहा कि कोई भी व्यक्ति वह सूचना मांग सकता है, जो विभाग के अभिलेखों में उपलब्ध हो। सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदक को 500 से अधिक शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कोई भी आवेदक कार्यालयों में लगाई गई निर्माण सामग्री की भी जानकारी ले सकता है। उन्होंने कहा कि धारा आठ व नौ एवं 24 के तहत ही सूचना देने से मना कर सकते हैं। नियम 04 (02) के तहत भी सूचना देने से मना कर सकते हैं। बिना तर्कसंगत यदि आवेदन को अस्वीकृत किया जाता है तो धारा 20 (1) के तहत 250 रुपये से 25000 हजार तक दंड लगाया जाएगा।

राज्य सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही ने बताया कि जनपदद मुजफ्फरनगर में 343 मामलों पर आयोग में सुनवाई हो रही है। उन्होंने बताया कि यूपी में 2006 से 2019 के बीच 432 हजार आरटीआई के मामले दर्ज हुए हैं, जिसमें से 326 हजार मामलों का निस्तारण किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में आरटीआई मामलों का निस्तारण प्रतिशत वर्तमान में 91 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में 11930 मामलों में जनसूचना अधिकारियों या अपीलीय अधिकारियों पर जुर्माना किया गया है। उन्होंने बताया कि आयोग में उनके द्वारा 60-70 केस की सुनवाई प्रतिदिन की जाती है।

इससे पूर्व राज्य सूचना आयुक्त हर्षवर्धन शाही ने गागर में सागर भरते हुए एक वाक्य में ही अपना पूरा परिचय दे दिया। उन्होंने कहा कि मैं भी आपके बीच से ही हूं। बस फर्क इतना है कि मैं आज टेबिल की इस ओर हूं। राज्य सूचना आयुक्त ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि उन्होंने 23 वर्ष हिन्दुस्तान समाचार पत्र में कार्य किया है। इसके साथ ही दैनिक जागरण और सहारा में भी कार्यरत रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनका ज्यादातर कार्यकाल गोरखपुर में व्यतीत हुआ है।

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