मंत्री जयप्रताप सिंह का बांसी विधानसभा में आज भी कायम है राजशाही रुतबा

वर्तमान में बांसी रियासत के ये कुंवर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट में स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री हैं। उनके जन्मदिन पर विशेष

Update: 2020-09-07 16:07 GMT

लखनऊ। राज्य विधानसभा के सदन में तीन दशक पूरे करने जा रहे भगवान बुद्ध की नगरी सिद्धार्थनगर की दो रियासतों में एक बांसी रियासत के राजकुमार जय प्रताप सिंह 'राजशाही' से 'लोकशाही' का सफल सफर तय करने वाले हिन्दुस्तान के चन्द ऐसे सियासतदां में से एक हैं, जिनके प्रति उनकी रियाया का प्यार राजतंत्र के लोकतंत्र में बदल जाने पर भी कम नहीं हुआ। यही कारण है कि वो 30 सालों में केवल एक बार ही चुनाव में पराजित हो पाये। 19 मार्च 2020 को योगी सरकार के तीन साल कार्यकाल के साथ ही जयप्रताप सिंह ने यूपी सदन में 26 साल का सफर तय कर लिया था। वर्तमान में बांसी रियासत के ये कुंवर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट में स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री हैं। उनके जन्मदिन पर विशेष...

बांसी रियासत के राजघराने के राजा रूद्र प्रताप सिंह के घर 7 सितम्बर 1953 को जन्में जयप्रताप सिंह ने स्कूली शिक्षा के बाद स्नातक की शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद 23 जनवरी 1983 को उनकी शादी वसुन्धरा कुमारी से कर दी गयी। परिवार में दो पुत्रो के पिता जयप्रताप सिंह जनसेवा में रूचि रखते थे। यही वजह थी कि उन्होंने राजनीति को चुना। जनसेवा के साथ-साथ बागवानी और सौरऊर्जा को ग्रामीण क्षेत्रों में कैसे बढ़ाया जाये भी उनके मन पसंद काम है। राजा रतनसेन सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट रतनसेन इंटर काॅलेज, रतनसेन डिग्री काॅलेज, बांसी रतन सेन सिंह शिक्षा परिषद बांसी के जयप्रताप सिंह कई दशक से प्रबंधक का कार्यभार संभालते हुए क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा दे रहे है।


सिद्धार्थनगर जिले की बांसी सीट पर साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बांसी राजघराने के सदस्य जयप्रताप सिंह पर हर विरोधियों की निगाहें टिकी रहीं। साल 1989 से 2017 तक सिर्फ एक विधानसभा चुनाव हारने वाले जयप्रताप सिंह की घेरेबंदी इस बार जबरदस्त तरीके से की गई थी। सपा हो या बसपा, सबके इरादे राजकुमार जयप्रताप के सियासी बंगले पर लगी हुई थी। 1989 में अपनी रियासत बांसी विधानसभा से निर्दल चुनाव लड़ने वाले राज कुमार जयप्रताप सिंह बाद में भाजपा में शामिल हो गये। वह 1989 से 2012 तक एक चुनाव के अलावा 6 बार जीते, लेकिन 1996 के बाद से उनकी ताकत कमजोर होती गई और वह 2007 में सपा के लालजी यादव से चुनाव हार गये। 1996 से 2017 के विधानसभा चुनाव तक लालजी यादव बांसी के राजकुमार जयप्रताप को बराबर की टक्कर देते रहे हैं। लालजी यादव के कारण भाजपा विधायक जयप्रताप से पिछड़ी जातियों का मोह भंग होने लगा था। यही कारण रहा कि 2007 के विधानसभा चुनाव में लाल जी यादव ने जयप्रताप को हराकर जीत हासिल कर ली थी। साल 2012 के चुनाव में लालजी को सपा ने फिर उम्मीदवार बनाया, जयप्रताप ने उनको पराजित कर पिछली हार का बदला लिया। साल 2017 में जयप्रताप को हर लिहाज से घेरने का प्रयास विपक्षी दलों ने किया। इस चुनाव में बसपा ने एमएलसी लालचंद निषाद को उम्मीदवार बना कर उनके पिछड़े वर्ग में बने प्रभाव को भेदने की चाल चली। सपा ने फिर से लालजी यादव पर विश्वास जताया तो इस सीट पर 32 हजार भाजपा के परपरागत लोधी वोटर के लिए लोधी समाज ने भी अपना उम्मीदवार उतार दिया था। ऐसे में भाजपा विधायक जयप्रताप सिंह का समीकरण कुछ गड़बड़ दिखायी देने लगा था। 2017 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जयप्रताप सिंह को उत्तर प्रदेश सरकार में आबकारी एवं मद्य निषेध विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया। इसके बाद उन्हें मंत्रीमंडल के विभाग फेरबदल स्वास्थ्य जैसे भारी भरकम विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी।


जहरीली शराब से मौत पर फांसी की सजा देने वाला पहला राज्य बना यूपी

जब जयप्रताप सिंह आबकारी मंत्री बने थे तो सितम्बर 2017 में हुई मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कैबिनेट मीटिंग में जहरीली शराब से होने वाली मौतों पर लगाम लगाने के लिए बड़ा फैसला लिया गया था। इस फैसले के साथ ही उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया था, जहां जहरीली शराब से मौत होने पर फांसी का प्रावधान किया गया। इसके लिए योगी सरकार ने 107 वर्ष पुराने आबकारी एक्ट 1910 को कड़ा बनाने के लिए इसमें संशोधन करते हुए नई धारा 60क जोड़ी है। इस धारा के तहत शराब से मौत या स्थाई अपंगता पर दोषियों को आजीवन कारावास, 10 लाख का जुर्माना या फिर दोनों सजा एक साथ मिल सकती हैं। इतना ही नहीं इस धारा के तहत मृत्यदंड का भी प्रावधान है। अंग्रेजों के बनाए उत्तर प्रदेश आबकारी अधिनियम, 1910 की दंडक धाराओं को बेहद कड़ा बनाने के लिए अध्यादेश के माध्यम से अधिनियम की दो दर्जन ऐसी धाराओं में संशोधन प्रस्ताव लाया गया, जिसमें सजा, दंड शुल्क और अधिकारियों के अधिकार का प्रावधान है। आबकारी एक्ट में ये ऐतिहासिक बदलाव करने के पीछे सरकार का मानना था कि कठोर दंड होने पर शराब की तस्करी व अवैध शराब बनाने पर अंकुश लगेगा जिससे आबकारी राजस्व में भी इजाफा होगा। अभी तक आबकारी एक्ट 1910 के अन्तर्गत शराब में मिलावट पर छह माह का कारावास और दो हजार रुपये अर्थदण्ड का प्रावधान था। इसी कारण अवैध शराब पर लाख प्रयासों के बावजूद भी अंकुश नहीं लग पाता था। शराब में मिलावट पर कड़ाई से अंकुश लगाने के लिए नए कानून के तहत एक वर्ष की जेल और पांच से दस हजार तक का अर्थदंड का प्रस्ताव लाया गया, अवैध रूप से मादक वस्तुओं को रखने, मादक वस्तुओं के अवैध आयात और परिवहन पर भी तीन वर्ष की सजा के साथ ही 25 हजार तक जुर्माना हो सकेगा। कंपाउडिंग धनराशि भी पांच हजार से बढ़ाकर एक लाख की गई। दोषी अफसरों के खिलाफ निलंबन और बर्खास्तगी तक की कार्रवाई हो सकेगी। हालांकि, गिरफ्तारी, निरुद्ध, जब्ती, सर्च वारंट और जमानती व गैर जमानती धाराओं आदि में संशोधन से अफसरों के अधिकारों में बढ़ोतरी भी होगी। बता दें कि पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार को आबकारी से 14272 करोड़ रुपये मिले थे, ये राजस्व शासन द्वारा निर्धारित लक्ष्य से काफी कम रहा। इसके पीछे पडौसी राज्य हरियाणा व अन्य क्षेत्रों से अवैध शराब की तस्करी प्रमख कारण रही। आबकारी अधिनियम 1910 की जिन धाराओं में संशोधन किया गया, उसमें अधिनियम की धारा 3, 50, 51, 52, 53, 54, 55, 60, 62, 63, 64, 64क, 65, 66, 67, 68, 69, 69क, 70, 71, 72, 73क, 74 एवं 74 क शामिल हैं। एक नई धारा 60 क जोड़ी गई है।

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