आज के दिन 1900 को शाही परिवार में जन्में थे भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड लुइस माउंटबेटन

Update: 2019-06-25 07:45 GMT

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के विशेष सहयोगी और मित्र रहे स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड लुइस माउंटबेटन का जन्म 25 जून 1900 को हिज सीरीन हाइनेस बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस के रूप में हुआ था। इनका मूल नाम लुई फ्राँसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस था। लॉर्ड माउण्ट बेटेन की अन्तर्राष्ट्रीय पृष्ठभूमि एक राजसी परिवार की थी। ये ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया की पड़पोती की चैथी सन्तान थे। वह भारत के आखिरी वायसरॉय और स्वतंत्र भारतीय संघ के पहले गवर्नर-जनरल थे। माउंटबेटन विंस्टन चर्चिल के चहेते थे।



माउंटबेटन की पत्नी एडविना से जवाहर लाल नेहरू के प्रेम सम्बन्धों पर माउंटबेटन की बेटी ने दावा किया था कि प्रेम के बावजूद नेहरू और एडविना में जिस्मानी संबंध नहीं रहे। लॉर्ड माउंटबेटन के एडीसी फ्रेडी बर्नबाई एत्किन्स ने बाद में पामेला को बताया था कि नेहरू और उनकी मां का जीवन इतना सार्वजनिक था कि दोनों के लिए यौन संबंध रखना संभव ही नहीं था।

लार्ड माउंटबेटन ने देशी राजाओं को अपनी रियासतों को भारत संघ अथवा पाकिस्तान में विलयन करने के लिए प्रेरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। सन 1954 से 1959 तक माउण्टबेटेन पहले सी लॉर्ड रहे थे, यह पद उनके पिता बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस ने लगभग चालीस साल पहले संभाला था। माउण्टबेटेन ने 15 अगस्त, 1947 को भारत का, भारत तथा पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके ब्रिटिश हाथों से भारतीय हाथों में सत्ता हस्तान्तरण के कार्य में भारी युक्ति कौशल, चुस्ती तथा राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया था। गवर्नर-जनरल की हैसियत से उन्होंने देशी राजाओं को अपनी रियासतों को भारत संघ अथवा पाकिस्तान में विलयन करने के लिए प्रेरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने भारत सरकार को विवाद संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में पेश करने की सलाह दी और इस प्रकार भारत तथा पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद उत्पन्न करने में मदद की।

माउंटबेटन की प्रारम्भिक पढाई घर पर ही हुई। उसके बाद उन्हें हर्टफोर्डशायर के लाकर्स पार्क स्कूल भेजा गया और अंततः अपने बड़े भाई का अनुसरण करते हुए वह वह नौसेना कैडेट स्कूल गए। बचपन में उन्होंने रूस में सेंट पीटर्सबर्ग के दरबार का दौरा किया और रूसी शाही परिवार के अंतरंग बन गए। माउंटबेटन ने पहले विश्व युद्ध के समय शाही नौसेना में एक मिडशिपमैन के रूप में सेवा दी। सेवा के बाद वह दो सत्रों के लिए कैम्ब्रिज के क्राईस्ट्स कॉलेज में रहे जहाँ उन्होंने पूर्व सैनिकों के लिए विशेष रूप से डिजाइन एक कार्यक्रम में इंजीनियरिंग की पढाई की। 1913 ई. में उन्होंने ब्रिटिश नौसेना में प्रवेश किया और योग्यता तथा चुस्ती के कारण द्वितीय विश्वयुद्ध में नौसेना के उच्च कमाण्डर नियुक्त हुए थे। 1922 ई. में उन्होंने एडविना एश्ले से विवाह किया था।



जब 1939 में जंग छिड़ी, तो माउंटबेटन को सक्रिय रूप से सेना में भेजते हुए उन्हें पांचवीं डिस्ट्रोयर फ्लोटिला के कमांडर के तौर पर एचएमएस केली में मौजूद जहाज पर तैनात कर किया गया था।

1979 में उनकी हत्या किए जाने तक माउंटबेटन अपनी कजिन रूस की ग्रैंड डचेच मारिया निकोलावेना अपने बिस्तर के पास रखते थे, ऐसा माना जाता है कि कभी वे उनके दीवाने हुआ करते थे। चूंकि माउंटबेटन का कोई बेटा नहीं था, इसलिए जब 23 अगस्त 1946 को उन्होंने विसकाउंट बनाया था, उसके बास 28 अक्टूबर 1947 को अर्ल और बेरोन बनाया था।

जब 79 वर्षीय माउंटबेटन नाव पर डोनेगल बे जा रहे थे, तभी 27 अगस्त 1979 को आयरलैंड की आतंकवादी पार्टी आईआरए ने लुइस माउंटबेटन की नाव को बम से उड़ाकर उन्हें मार दिया था। उनकी लाश पानी में उल्टी तैरती हुई मिली थी। कहते हैं कि कभी उन्होंने अपने दोस्तों से कहा था कि उनकी इच्छा है कि वे समुद्र में आखिरी सांस लें।'

स्वतंत्र भारत के पहले ने लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत छोड़ने से पहले जवाहर लाल नेहरू को एक चिट्ठी लिखी थी। वह चिट्ठी भारत और पाकिस्तान के संबंधों को लेकर यह अंतिम चिट्ठी थी। लॉर्ड माउंटबेटन भारत छोड़ने से पहले कश्मीर मसले को खत्म करना चाहते थे, इसी सिलसिले में उन्होंने चिट्ठी के माध्यम से नेहरू को लियाकत अली और मोहम्मद अली जिन्ना के साथ कश्मीर मसलों को आपसी तालमेल से खत्म करने का सुझाव दिया।

नई दिल्ली

2 नवंबर 1947

मेरे प्रिय प्रधानमंत्री,

मैंने हर दिन काम करते समय यह कोशिश की है कि सभी को मिलाकर साथ चलूं और सबका ध्यान रखूं। मैंने इसी को ध्यान में रखकर मिस्टर लियाकत अली खान और मोहम्मद जिन्ना से साथ-साथ बातचीत की तथा जिन्ना से अकेले में मेरी 3 घंटे से ज्यादा की बातचीत हुई।

मैं आपका आभार व्यक्त करना चाहूंगा कि आपने इन दोनों को उपप्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया। लेकिन यह ज्यादा अच्छा होगा कि इस बात को बिना मेरी इजाजत के आप दूसरों को नहीं बताएं, क्योंकि यह पूरी बातचीत का आधार अनधिकृत और अनौपचारिक था।

जब हम सब मिलें तो इसमें कोई संदेह नहीं था कि जिन्ना और लियाकत यह महसूस कर रहे थे कि शुरू से लेकर अंत तक जान-बूझकर इसे लंबा खींचा गया और हमें भ्रमित किया गया ताकि कश्मीर का बंटवारा न हो, वह जैसा है उसी तरह छोड़ दिया जाए।

हमने बहुत प्रयास किया कि दोनों के इस भ्रम को दूर किया जाए, मगर इसकी कोई गारंटी नहीं कि हम इसमें कामयाब हुए। इस लंबी बातचीत के आधार पर मैंने एक रफ नोट तैयार किया है और उसी के आधार पर आपको एक सलाह देता हूं कि आपको इस तरह की आपसी लड़ाई से बचने के लिए लियाकत अली के पास टेलीफोन मसौदा तैयार कर भेजना चाहिए। संभवतरू आपको और उपप्रधानमंत्री को कल सुबह रक्षा समिति के बाद चर्चा के लिए रहना होगा।

मैं आपको बधाई देता हूं जिसे मैं अभी पढ़ा है जिसमें आपने मिस्टर जिन्ना के हड़ताल करने जैसी बयानों का जवाब दिया है।

आपका विश्वासी

बर्मा से माउंटबेटन 

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