कम्यूनिटी पुलिसिंग : आज की जरूरत

उत्तर प्रदेश में पिछले एक दशक में चाहे S-7 और S-10 हो परिवार परामर्श केन्द्र हों या नगरसुरक्षा समितियां, महिला हेल्पलाईन हो या बालमित्र थानें, नशामुक्ति शिविर हो अभियान, ट्रेफिक वार्डन हो या विशेष पुलिस अधिकारी,पुलिस के इन सब सदप्रयासों को समाज की सराहना, सहयोग एवं सद्भावना मिली है।

Update: 2018-02-08 03:59 GMT
पास्ट से लेकर प्रेजेंट तक पुलिस हमारे समाज का लाजिमी हिस्सा रही है। समाज की हिफाज़त की जिम्मेदारी कभी शहनशाह और वजीरे आला, कभी बादशाह और सिपहसालार तो कभी सुल्तान और वजीर की थी । मुद्दत में यह जिम्मेदारी कोतवाल के जरिए से धीरे धीरे आ पहुंची पुलिस तक  वक्त के साथ पुलिस की जिम्मेदारियों में भी  बदलाव आये हैं ।
आज पुलिस की प्राथमिकताओं एवं कर्तव्यों में केवल अपराधों की विवेचना, अपराधों का निराकरण एवं निवारण, अपराधियों की धरपकड ही शामिल नहीं है वरन बढती आबादी, बेलगाम यातायात, गांवों से शहरों की ओर दौड, औद्योगिकरण एवं चौतरफा विकास के नये पहलुओं के साथ उगती समस्याओं एवं इन समस्याओं से जन्म लेते नित नये अपराधों की रोकथाम भी है ।
साल 1980 के बाद से कश्‍मीर से कन्याकुमारी तक और पंजाब से आसाम तक पनपे आतंकवाद नें पूरे हिन्दुस्तान को अपने आगोश में लेकर कानून व्यवस्था को पल-पल पर चुनौती दी है। भूमण्डलीकरण एवं औद्योगिकरण के दौर में आर्थिक अपराधों एवं सायबर क्राईम की नई फसलें पैदा हो रही हैं । इन सब से निपटनें के लिए न तो पुलिस के बल में वृद्धि हुई है, न साधनों एवं न संसाधनों में । इन तमाम बढती जिम्मेदारियों के परिप्रक्ष्य में साधन, सांसाधनों के अभाव से जूझती पुलिस कभी कभी तो हिमालयीन अपेक्षाओं के सामनें बहुत बौनी नजर आती है।
सरकारी कार्यालयों में मात्र पुलिस थाना ही ऐसा भवन है जिसके नसीब में न तो सुबह और न ही शाम को ताला होता है। साल के 365 दिन, चौबीस घण्टे ड्यूटी पर मानें जानें वाले पुलिसकर्मी के लिए न तो छुट्टी का दिन मुकर्र्‌र हैऔर न ड्यूटी के घण्टे । थानें में बैठकर एवं सडक पर खडे रहकर हम सब की हिफाजत के लिए फिक्रमंद रहनें वाले पुलिसकर्मियों को भी उम्मीद रहती है कि कुछ पलों के लिए ही सही, उसे भी सकून की छांव मिले, उसे भी परिवार का सानिध्य मिले । इन सब चिंताओं एवं दबाव के कारण पुलिसकर्मियों के व्यवहार में भी एक रूखापन आ जाता हैजिससे समाज में पुलिस की साफ तस्वीर नहीं बन पाती ।
पुलिस भी इसी समाज का अंग है और विकृतियां तथा मानवीय कमजोरियों से अछूती नहीं है। आज जरूरत है पुलिस के कार्यो में पारदर्षिता की, पुलिसकर्मियों के व्यवहार में बदलाव की तथा पुलिस के प्रति समाज के सकारात्मक नजरिये की क्योंकि अखिर पुलिसकर्मी भी तो एक इंसान ही है। 
समाज में शांतिव्यवस्था एवं सुरक्षा क्या केवल पुलिस का दायित्व है ? या प्रत्येक व्यक्ति का ? मेरा यह माननाहै कि हमारे घर तभी तक सुरक्षित हैं जब तक पडोसी के ताले न टूंटे । वह एक आदर्श समाज होगा जहां अपराध नहों और पुलिस न हो लेकिन अपराध विहीन एवं पुलिस विहीन समाज की कल्पना एक दूर की कौडी है। आज चारों तरफ जन भागीदारी की बात हो रही है। पुलिस के कार्यो में भी समाज की सहभागिता की नितान्त आवश्‍यकता है।
उत्तर प्रदेश से लेकर पूरे देश में यदि पुलिस-जनसंख्या अनुपात की बात करें तो जहां शहरी क्षेत्रों में एक हजार व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात बढकर १५०० व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी हो जाता है।निश्चित रूप से हजारों व्यक्तियों की सुरक्षा न तो एक व्यक्ति कर सकता है और न ही यह संभव है। लेकिन यदिसमाज का सहयोग मिल जाता है तो यही पुलिस अपने नगण्य अनुपात के बावजूद एक भरोसा समाज को अवश्‍य देसकती है कि हम ऐसी व्यवस्था स्थापित कर सकते हैं जहां शरीफ चैन से एवं बदमाश बैचेन रहें । जन सहयोग केलिए ही मध्य प्रदेश देश का वह पहला राज्य है जिसनें नगरसुरक्षा/ ग्रामरक्षा समितियों को कानूनी जामा पहनानें के लिए वर्ष १९९९ में एक विधेयक भी पारित किया है ।
नगरसुरक्षा/ ग्रामरक्षा समितियां काफी जिलों में सक्रिय होकर पुलिस के काम में हाथ बटा रही हैं और निश्चित रूपसे वर्दीवालों को बिना वर्दीवालों का सहयोग मिल रहा है। जिसदिन हर नागरिक अपनें आप को कानून का रखवालासमझेगा, पुलिस और जनता के बीच संवाद, सहयोग एवं समरसता के रिश्‍ते स्थापित हो जायेगें उसी दिन हर समस्याका समाधान निकल आयेगा ।
सामुदायिक पुलिसिंग आधुनिक अवधारणा अवश्‍य है लेकिन आज की आवश्‍यकताओं का वास्तविक समाधान भी यही है। उत्तर प्रदेश में पिछले एक दशक में चाहे S-7 और S-10 हो परिवार परामर्श केन्द्र हों या नगरसुरक्षा समितियां, महिला हेल्पलाईन हो या बालमित्र थानें, नशामुक्ति शिविर हो  अभियान, ट्रेफिक वार्डन हो या विशेष पुलिस अधिकारी,पुलिस के इन सब सदप्रयासों को समाज की सराहना, सहयोग एवं सद्भावना मिली है। इन सब उपक्रमों के माध्यम से पुलिस और जनता के बीच सीधा संवाद प्रारंभ होनें से यह उम्मीद की जाना चाहिए कि यह संवाद एवं सहयोग एक सेतु के रूप में विकसित होगा । 
निश्चित रूप से वर्तमान में पुलिस और जनता को साथ साथ कदम मिलानें की जरूरत है। समुदायिक पुलिसिंग के सरोकारों को आगे बढानें की जरूरत है और इसी में पुलिस, जनता और समाज सभी का हित है।

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