गायक बनना चाहते थे भारत भूषण
भारत भूषण के पिता चाहते थे कि उनका बेटा भी उन्हीं की तरह वकील बने लेकिन भारत भूषण को यह बात मंजूर नही थी
मुंबई। बॉलीवुड अभिनेता भारत भूषण ने पचास-साठ के दशक में अपनी अभिनीत फिल्मों से दर्शकों के बीच खास पहचान बनायी लेकिन वह अभिनेता नहीं गायक बनना चाहते थे।
14 जून 1920 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में जन्में भारत भूषण का रूझान बचपन के दिनो से ही संगीत की ओर था और वह गायक बनना चाहते थे। भारत भूषण के पिता रायबहादुर मोतीलाल वकील थे। भारत भूषण के पिता चाहते थे कि उनका बेटा भी उन्हीं की तरह वकील बने लेकिन भारत भूषण को यह बात मंजूर नही थी।
एक बार पिता के किसी काम के सिलसिले में बाहर जाने पर भारत भूषण दोस्तों के साथ फिल्म देखने चले गए थे। लेकिन वह फिल्म देख के वापस नहीं आ पाए और उनके पिता घर आ चुके थे। यह जानने के बाद कि भारत फिल्म देखकर आ रहे हैं। उनके पिता ने उनकी खूब पिटाई की थी। लेकिन भारत भूषण पर तो अभिनय का भूत सवार था। घर से भाग कर कलकत्ता जा पंहुचे। भक्ति फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए, कलकत्ता में काम कुछ खास नहीं बना। लेकिन गायक बनने का सपना जरूर पाल बैठे।
चालीस के दशक में दिल में गायक बनने का सपना लिए भारत भूषण मुंबई आ गये।मुंबई आने के बाद सर्वप्रथम भारत भूषण को केदार शर्मा की फिल्म 'चित्रलेखा' में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला। हालांकि फिल्म सफल रही लेकिन इसका फायदा निर्देशक केदार शर्मा को हुआ और भारत भूषण इस फिल्म के जरिये अपनी पहचान नही बना सके। वर्ष 1942 में भारत भूषण की एक पौराणिक फिल्म। 'भक्त कबीर' प्रदर्शित हुयी। उन दिनों कबीर जैसे विवादस्पद विषय पर फिल्म बनाना एक साहसिक कदम था। फिल्म की सफलता के बाद भारत भूषण फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कुछ हद तक कामयाब हो गये।
वर्ष 1942 से वर्ष 1951 तक भारत भूषण फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिये संघर्ष करते रहे। फिल्म 'चित्रलेखा' के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गये। इस बीच उन्होंने सुहाग रात, अंजाना, रंगीला राजस्थान, उधार,चकोरी, देश सागर जैसी कई फिल्मों मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बाक्स आफिस पर सफल नहीं हुयी।
वर्ष 1952 भारत भूषण के सिने करियर का अहम वर्ष साबित हुआ और उन्हें विजय भटृ के निर्देशन मे बैजू बावरा में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म ने 100 सप्ताह तक बॉक्स आफिस पर चलने का रिकार्ड बनाया। इस फिल्म की सफलता के बाद भारत भूषण बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गये।इसके बाद भारत भूषण को विजय भटृ के निर्देशन में बनी एक और फिल्म 'चैतन्य महाप्रभु' में काम करने का अवसर मिला। फिल्म चैतन्य महाप्रभु भी बॉक्स आफिस पर सुपरहिट साबित हुयी इसके साथ ही इस फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये भारत भूषण फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये।
पचास के दशक में अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद जैसे सितारे फिल्म इंडस्ट्री में अपनी धाक जमा चुके थे लेकिन भारत भूषण ने अपनी एक अलग इमेज बनायी और दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इस बीच आनंद मठ,मिर्जा गालिब,बसंत बहार, फागुन, गेटवे ऑफ इंडिया,रानी रूपमती की सफलता के बाद भारत भूषण सफलता के शिखर पर जा पहुंचे।
वर्ष 1964 में भारत भूषण ने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म दूज का चांद का निर्माण किया, लेकिन यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से पिट गयी। इसके बाद भारत भूषण ने फिल्म निर्माण से तौबा कर ली। बढ़ते कर्जे के चलते उन्हें अपना शानदार बंगला अपने दोस्त राजेन्द्र कुमार को बेचना पड़ा। वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म तकदीर बतौर मुख्य अभिनेता भारत भूषण की अंतिम फिल्म साबित हुयी।
सत्तर के दशक में जब फिल्म निर्माण का नया दौर शुरू हुआ और एक्शन फिल्में बननी शुरू हो गयी तब निर्माता-निर्देशको ने भारत भूषण की ओर से अपना मुख मोड़ लिया। भारत भूषण ने जहां कामयाबी का शिखर चूमा, शाही एवं ठाठ बाट की जिंदगी जी, वहीं अपनी ढलती उम्र में गरीबी के कड़वे घूंट भी पिए। जो निर्माता उनसे अपनी फिल्म में काम करने के लिये गुजारिश किया करते थे उन्होंने उनसे बात करना भी बंद कर दिया।इसके बाद बढ़ती उम्र के तकाजे को देखते हुये और अपनी रोजी -रोटी चलाने के लिये भारत भूषण ने चरित्र भूमिका निभानी शुरू कर दी।
लेकिन अस्सी के दशक में नौबत यहां तक आ गयी कि उन्हें मामूली से मामूली रोल ही मिलने लगे।जब निर्माताओं को किसी दुखी बाप.डाक्टर.वकील की छोटी सी भूमिका निभाने वाले कलाकार की जरूरत होती वे भारत भूषण को याद कर लेते।इस बीच भारत भूषण की माली हालत बिगड़ती चली गयी और फिल्मों में भी उन्हें काम मिलना लगभग बंद हो गया तब उन्होंने छोटे पर्दे की ओर भी रूख कर लिया और दिशा और बेचारे गुप्ताजी जैसे धारावाहिको में अभिनय किया ।
अपने दमदार अभिनय से सिने प्रेमियो को भावविभोर करने वाले भारत भूषण अंतत 27 जनवरी 1992 को को इस दुनिया को अलविदा कह गये।भारत भूषण ने अपने आखिरी वक्त में कहा था, "मौत तो सबको आती है, लेकिन जीना सबको नहीं आता। और मुझे तो बिल्कुल नहीं आया।"