दान-पुण्य का पर्व मकर संक्रांति

दान-पुण्य का पर्व मकर संक्रांति

लखनऊ। हमारे देश में आस्था के साथ मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 14 जनवरी को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का त्योहार विशेष महत्व रखता है। इस दिन श्रद्धालु भक्ति-भाव से भगवान सूर्य की उपासना करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति वाले दिन भगवान सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, अन्य राशि प्रवेश से यह प्रवेश अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना गया है।

मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य के साथ-साथ भगवान गणेश, माता लक्ष्मी और भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है और मनुष्य का सोया नसीब जाग जाता है। इस दिन गुड़ और तिल का दान किया जाता है, साथ ही खिचड़ी का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति के दिन स्नान का भी विशेष महत्व है। इस दिन प्रातरूकाल उठकर पवित्र नदी में स्नान करने से पुण्य मिलता है। हिंदू पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र भगवान शनि के पास जाते हैं। उस समय भगवान शनि मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। शनि, मकर राशि के देवता हैं इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इस विशेष दिन पर जब कोई पिता अपने पुत्र से मिलने जाता है, तो उनकी सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं। मकर संक्रांति का महाभारत में भी वर्णन किया गया है, जो भीष्म पितामह के जीवन से जुड़ी हुई है। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। युद्ध में जब वह बाण की शैय्या पर लेटे हुए थे, तब वे अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे थे, क्योंकि उनका मानना था कि उत्तरायण में प्राण त्यागने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। इस साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है।

इस साल पुण्य काल के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 8.30 बजे से 12.30 बजे तक है, जिसकी अवधि 4 घंटे 26 मिनट है वहीं, महापुण्य काल का समय सुबह 8.03 से 8.27 तक है, यानी यह अवधि केवल 24 मिनट की है। मकर संक्रांति पर मकर राशि में कई महत्वपूर्ण ग्रह एक साथ गोचर करेंगे। इस दिन सूर्य, शनि, गुरु, बुध और चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे। जोकि एक शुभ योग का निर्माण करते हैं। इसीलिए इस दिन किया गया दान और स्नान जीवन में बहुत ही पुण्य फल प्रदान करता है और सुख समृद्धि लाता है। हिन्दू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और तभी से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। उत्तरायन अर्थात उस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। इसे सोम्यायन भी कहते हैं। 6 माह सूर्य उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन। अतरू यह पर्व उत्तरायन के नाम से भी जाना जाता है। मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 मास के समयांतराल को उत्तरायन कहते हैं। यह त्योहार संपूर्ण भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी विभिन्न रूप में मनाया जाता है। इस दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं। खेत में सरसों के फूल मनमोहक लगते हैं।


मकर संक्रांति के इस पर्व को भारत के अलग-अलग राज्यों में वहां के स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में मकर संक्रांति का त्योहार पोंगल के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार गोवर्धन पूजा, दिवाली और मकर संक्रांति का मिला-जुला रूप है। पोंगल विशेष रूप से किसानों का पर्व है। यह उत्सव लगभग 4 दिन तक चलता है। लेकिन मुख्य पर्व पौष मास की प्रतिपदा को मनाया जाता है। पोंगल अर्थात खिचड़ी का त्योहार। पोंगल के पहले अमावस्या को लोग बुरी रीतियों का त्यागकर अच्छी चीजों को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करते हैं। यह कार्य पोही कहलाता है तथा जिसका अर्थ है- जाने वाली। पोंगल का तमिल में अर्थ उफान या विप्लव होता है। पोही के अगले दिन अर्थात प्रतिपदा को दिवाली की तरह पोंगल की धूम मच जाती है।

पंजाब और हरियाणा एवं इनके प्रभाव क्षेत्र में इसे लोहड़ी कहते हैं। लोहड़ी बसंत के आगमन के साथ 13 जनवरी, पौष महीने की आखरी रात को मनाया जाता है। इसके अगले दिन माघ महीने की सक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है। वैसाखी त्योहार की तरह लोहड़ी का सबंध भी पंजाब के गांव, फसल और मौसम से है। लोहड़ी की संध्या को लोग लकड़ी जलाकर अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। अग्नि की परिक्रमा बिहू असम में फसल कटाई का प्रमुख त्योहार है। यह फसल पकने की खुशी में मनाया जाता है। इसी त्योहार को पूर्वोत्तर क्षेत्र में भिन्न भिन्न नाम से मनाते हैं। एक वर्ष में यह त्योहार तीन बार मनाते हैं। पहला सर्दियों के मौसम में पौष संक्रांति के दिन, दूसरा विषुव संक्राति के दिन और तीसरा कार्तिक माह में मनाया जाता है।

पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू, विषुव संक्रांति को रोंगाली बिहू और कार्तिक माह में कोंगाली बिहू मनाया जाता है। ईरान में भी नववर्ष का त्योहार इसी तरह मनाते हैं। यह त्योहार भी लोहड़ी से ही प्रेरित है जिसमें आग जलाकर मेवे अर्पित किए जाते हैं। मसलन, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में मनाई जाने वाली लोहड़ी और ईरान का चहार-शंबे सूरी बिल्कुल एक जैसे त्योहार हैं। इसे ईरानी पारसियों या प्राचीन ईरान का उत्सव मानते हैं। यह त्योहार नौरोज या नवरोज के एक दिन पहले मनाया जाता है। गुजरात सहित कई राज्यों में यह पर्व पतंग महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। (हिफी)

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