फ्लैश बैक- लोकसभा चुनाव में दो बाप बेटे जीते इलेक्शन तो दो को मिली हार

फ्लैश बैक- लोकसभा चुनाव में दो बाप बेटे जीते इलेक्शन तो दो को मिली हार

मुजफ्फरनगर। इसे इत्तेफाक कह सकते हैं या किस्मत। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर 4 बार दो बाप बेटे और दो पिता पुत्र चुनाव लड़ चुके हैं। जहां दो बाप बेटों ने चुनाव में जीत दर्ज की तो वही दो पिता पुत्र को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। कौन है यह बाप बेटे और पिता पुत्र। पढ़िए आज की खोजी न्यूज़ की खबर ......

उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर चुनाव में हार जीत तो सभी राजनीतिक दलों के साथ-साथ नेताओं की होती रही है, मगर इस लोकसभा सीट पर एक रिकॉर्ड कायम है कि चार बार दो बाप बेटे लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। जिसमें से दो बाप बेटों के हिस्से में इस लोकसभा सीट पर चुनाव जीतकर सांसद बनने की बारी आई है तो दो बाप बेटे, जो राजनीतिक रूप से दिग्गज नेता माने जाते हैं। उनके हिस्से में इस लोकसभा सीट पर हार मिली है।

दरअसल सबसे पहले किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह ने 1971 में बीकेडी के टिकट पर मुजफ्फरनगर आकर लोकसभा का चुनाव लड़ा। चौधरी चरण सिंह के मुजफ्फरनगर से लड़ने की वजह तब का चौधरी चरण सिंह का किसान मजदूर कामगार मुसलमान फार्मूला कारगर माना जा रहा था । जाट मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के कारण भी चौधरी चरण सिंह ने इस लोकसभा सीट को अपने चुनाव लड़ने के लिए चुना था। चौधरी चरण सिंह ने बीकेडी ( BKD ) के उम्मीदवार के तौर पर नामांकन किया तो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ( CPI ) के कैंडिडेट के तौर पर विजय पाल सिंह ने उनके सामने पर्चा दाखिल कर दिया। इस चुनाव में चौधरी चरण सिंह की जीत निश्चित मानी जा रही थी लेकिन जब चुनावी नतीजे आए तो सीपीआई के विजयपाल सिंह ने 2,03,193 वोट पाकर चौधरी चरण सिंह को 50,279 वोटों से हरा चुके थे। चौधरी चरण सिंह को इस चुनाव में 1,52,914 वोट मिले थे। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर चौधरी चरण सिंह ने हार के बाद फिर इस लोकसभा सीट की तरफ रुख नहीं किया।

2014 में जब बागपत लोकसभा सीट पर उनके बेटे चौधरी अजीत सिंह चुनाव हार गए तो 2019 के इलेक्शन में रालोद के टिकट पर चौधरी अजीत सिंह ने बागपत के मुकाबले मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट को अपनी जीत के लिए आसान समझा। चौधरी अजीत सिंह ने जब मुजफ्फरनगर से लड़ने की इच्छा जाहिर की तो कॉन्ग्रेस, सपा, बसपा सहित किसी भी अन्य पार्टी ने उनके सामने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा। इसलिए रालोद के चौधरी अजीत सिंह और भाजपा के संजीव बालियान के बीच इस चुनाव में सीधा मुकाबला हुआ। इस बार भी चौधरी चरण सिंह की तरह अजीत सिंह की जीत निश्चित मानी जा रही थी लेकिन भाजपा के संजीव बालियान ने उनको कड़े मुकाबले में 6526 वोट से हरा दिया। चौधरी अजीत सिंह को इस चुनाव में 5,67,676 मिली तो भाजपा के संजीव बालियान को 5,73,780 वोट मिली। इस तरह मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर पिता चौधरी चरण सिंह और बेटे अजीत सिंह लोकसभा सीट पर दोनों ही चुनाव हार गए।

इस लोकसभा सीट पर जहां बाप बेटे के रूप में चौधरी चरण सिंह और चौधरी अजीत सिंह को हार का मुंह देखना पड़ा। वहीं मुज़फ्फरनगर लोकसभा सीट पर बाप सईद मुर्तजा और बेटे सईदुज़्ज़मां ने चुनाव जीतकर इस लोकसभा सीट पर बाप - बेटे दोनों के चुनाव जीतने का रिकार्ड बनाया है। 1977 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर सईद मुर्तजा ने भारतीय लोकदल ( BLD ) के टिकट पर चुनाव लड़ा और 2,70,644 वोट पाकर सईद मुर्तजा ने कांग्रेस के प्रत्याशी चौधरी वरुण सिंह को 1,82,659 वोटों से हरा दिया था। चौधरी वरुण सिंह को केवल 87985 वोट मिली थी। इसके बाद सईद मुर्तजा के पुत्र सईदुज़्ज़मां ने राजनीति में कदम रखा। 1985 में सईदुज़्ज़मां विधायक बन चुके थे लेकिन बाद में 1999 के लोकसभा चुनाव में से सईदुज़्ज़मां कांग्रेस और रालोद के गठबंधन पर मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़े और उन्होंने अपने पिता की जीत के बाद बेटे के रूप में लोकसभा सांसद बनने का रूतबा हासिल किया। सईदुज़्ज़मां को 1,96,699 वोट तो बीजेपी के तत्कालीन सांसद सोहनवीर सिंह को 1,70,918 वोट, बसपा के राजपाल सैनी को 1,63,721 वोट तो समाजवादी पार्टी के हरेंद्र मलिक को 1,12,499 वोट मिले थे । सईदुज़्ज़मां ने लगभग 25000 वोटों से लोकसभा सीट जीत ली थी। कुल मिलाकर मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर चार बार बाप-बेटे चुनाव लड़े। दो बाप बेटों को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा तो दो बाप बेटों ने इस लोकसभा सीट पर अपनी विजय पताका फहराई हैं।

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