क्या संजीव बालियान को हराकर अपना दबदबा बनाना चाहती है RLD

क्या संजीव बालियान को हराकर अपना दबदबा बनाना चाहती है RLD

लखनऊ । 2024 का लोकसभा चुनाव धीरे-धीरे अपने उफान पर पहुंचने लगा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर राष्ट्रीय लोकदल भाजपा से गठबंधन होने के बावजूद क्या संजीव बालियान को हारना चाहता है, अगर हारना चाहता है तो क्यों। पढ़िए खोज न्यूज़ का शानदार विश्लेषण।

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर साल 2014 के हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर संजीव बालियान ने तमाम विपक्ष का सुपड़ा साफ करते हुए बसपा प्रत्याशी कादिर राना को बहुत बड़े अंतर से शिकस्त दी थी। इसके बाद 2019 का लोकसभा चुनाव आया तो संजीव बालियान ने राष्ट्रीय लोकदल के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह को चुनाव में पटकनी दे दी थी। अब संजीव बालियान तीसरी बार मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन के प्रत्याशी हैं लेकिन राष्ट्रीय लोकदल से जुड़े भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक संजीव बालियान भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल के संयुक्त प्रत्याशी जरूर है मगर राष्ट्रीय लोक दल संजीव बालियान को चुनाव हारने में अंदरुनी रूप से जुटी हुई है । राष्ट्रीय लोकदल संजीव बालियान को क्यों हराना चाहती है इसके लिए तो थोड़ा विस्तृत रूप से जाना जरूरी है।

दरअसल 2009 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन था लेकिन 2013 में जब मुजफ्फरनगर दंगा हुआ तो रालोद और भाजपा की राहें अलग-अलग हो गई तब भाजपा ने संजीव बालियान पर दांव लगाया और संजीव बालियान ने भाजपा के भरोसे पर खरा उतरते हुए बड़ी जीत हासिल की। चूंकि मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट जाट बाहुल्य इलाका है तो राष्ट्रीय लोकदल और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता आमने-सामने आने लगे। 2017 के विधानसभा के चुनाव आने तक रालोद और भाजपा के कार्यकर्ता एक दूसरे के सामने बड़ी मजबूती से खड़े होने लगे। 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आई तो कहीं ना कहीं टीम संजीव बालियान और भाजपा कार्यकर्ता आरएलडी के इस घर में हावी होने लगे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत, मुजफ्फरनगर और शामली जिले में आरएलडी के कार्यकर्ताओं ने हमेशा अपना दबदबा बना के रखा लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद उनका दबदबा कम हुआ और इस इलाकों में टीम संजीव बालियान और भाजपा के कार्यकर्ता मजबूत स्थिति में दिखाई पड़ने लगे। 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद का एकमात्र विधायक बागपत की छपरौली विधानसभा सीट से जीता, बाद में उसने भी भाजपा से अपनी पींगे बढ़ा ली।

2019 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के सपा - बसपा के गठबंधन के तहत जहां जयंत चौधरी बागपत से चुनाव लड़े तो वहीं तमाम विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में मुजफ्फरनगर पर चौधरी अजीत सिंह ने ताल ठोकी। जयंत चौधरी का बागपत और चौधरी अजीत सिंह का मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने का सीधा-सीधा मकसद था कि 2013 के दंगों में जिस तरह से जाट और मुस्लिम के बीच खाई पैदा हुई थी वह दोनों नेता इस आसपास की लोकसभा सीटों पर जीतकर उसको खत्म करने की रणनीति बना रहे थे। इस रणनीति के पीछे वजह यह भी थी कैराना से सांसद बाबू हुकम सिंह की मौत के बाद जब कैरन लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तब सपा - रालोद गठबंधन के तहत तबस्सुम हसन ने कैराना लोकसभा सीट पर राष्ट्रीय लोक दल के सिंबल पर चुनाव लड़ा और वह जीत भी गई लेकिन 2019 के इलेक्शन में मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान और बागपत में सत्यपाल सिंह ने भाजपा के टिकट पर मजबूती से चुनाव लड़ते हुए दोनों को शिकस्त दे दी। मुजफ्फरनगर में तो चौधरी अजीत सिंह को राष्ट्रीय लोकदल के कार्यकर्ता भाजपा पर जबरदस्ती हराने का आरोप लगाते रहे।

इसके बाद से मुजफ्फरनगर, शामली और बागपत में राष्ट्रीय लोक दल और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता एक दूसरे के सामने आने लगे। हद तो यहां तक हो गई कि राष्ट्रीय लोकदल के कार्यकर्ता भाजपाइयों को संघी तो भाजपा वाले राष्ट्रीय लोक दल के कार्यकर्ताओं को रलदू नाम से कहकर चिढ़ाते थे। 2022 का विधानसभा चुनाव आते-आते तो दोनों में टकराव इस कदर बढ़ा कि कई जगह संजीव बालियान सहित कई बड़े भाजपा नेताओं का रालोद कार्यकर्ताओं ने जबरदस्त विरोध किया तथा कई जगह दोनों पार्टी के कार्यकर्ता आमने-सामने आ गए, जहां टकराव की स्थिति बन गई। 2022 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल ने 8 सीटें जीती, जिसमें दो शामली, तीन मुजफ्फरनगर तथा एक बागपत की सीट शामिल थी। मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से भाजपा विधायक विक्रम सैनी को जब 2 साल की सजा हुई और खतौली में उपचुनाव हुए तब संजीव बालियान ने रालोद के प्रत्याशी मदन भैया को लेकर एक टिप्पणी की जिसका नतीजा रहा कि जयंत चौधरी ने खतौली में आकर मोर्चा संभाल लिया। यहां भी रालोद और भाजपा के कार्यकर्ताओं में सीधा टकराव था लेकिन जीत रालोद के मदन भैया के हिस्से में आई। भाजपा और रालोद कार्यकर्ताओं के बीच पूरे 10 साल में तनातनी खूब चली थी।

इस खींचतान में टीम संजीव बालियान ने रालोद का डटकर मुकाबला किया। बुढ़ाना के ब्लॉक प्रमुख चुनाव में तो राष्ट्रीय लोक दल और भाजपा के नेता आमने-सामने डट गए थे। अब राष्ट्रीय लोक दल और भारतीय जनता पार्टी के 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर हाथ मिल गए हैं लेकिन अभी भी राष्ट्रीय लोक दल के कार्यकर्ता और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच ताल में नहीं बैठ पाया है। इसी बीच राष्ट्रीय लोकदल से जुड़े भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय लोकदल मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान को भीतर खाने हराने में जुटा हुआ है। इसके पीछे एक सटीक वजह भी बताई जा रही है। दरअसल राष्ट्रीय लोकदल और संजीव बालियान के बीच हमेशा से 36 का आंकड़ा रहा। अब जब राष्ट्रीय लोकदल का भाजपा से गठबंधन हो गया है तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत, मुजफ्फरनगर और शामली जिलों में अपनी मजबूत स्थिति रखने वाली राष्ट्रीय लोकदल को एहसास है कि अगर उसने संजीव बालियान को चुनाव में हरवा दिया तो इन तीनों जिलों में कहीं ना कहीं राष्ट्रीय लोकदल प्रभावी भूमिका में रहेगा। दरअसल सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय लोकदल शामली, मुजफ्फरनगर और बागपत में पूरी तरह से मजबूत है।

अब लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत बागपत और बिजनौर लोकसभा राष्ट्रीय लोकदल के हिस्से में आ चुकी हैं। जिस पर बागपत से राजकुमार सागवान और बिजनौर से चंदन चौहान चुनाव लड़ रहे हैं। शामली जिले की कैराना लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी के रूप में प्रदीप चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं जो कि सहारनपुर जिले के रहने वाले हैं। जहां राष्ट्रीय लोकदल मजबूत स्थिति में नहीं है। अब रालोद की प्लानिंग है कि बागपत से राजकुमार सागवान और बिजनौर से चंदन चौहान चुनाव जीतते हैं तो दोनों लोकसभा सीट पर रालोद का कब्जा होगा अगर मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान चुनाव हारते हैं तो उसका सीधा लाभ रालोद को मिलेगा। दरअसल राष्ट्रीय लोकदल जानती है कि मुजफ्फरनगर की 6 विधानसभा सीटों पर एक सीट पर भाजपा विधायक के रूप में कपिल देव अग्रवाल हैं जबकि पांच विधानसभा सीटों पर चार पर राष्ट्रीय लोक दल खतौली से मदन भईया , बुढ़ाना से राजपाल बालियान , मीरापुर चन्दन चौहान, पुरकाजी से अनिल कुमार तथा एक सीट चरथावल पर समाजवादी पार्टी से पंकज मलिक विधायक है। इसके साथ ही शामली की तीन विधानसभा सीटों में दो सीटों शामली से प्रसन्न चौधरी और थानाभवन से अशरफ अली खान राष्ट्रीय लोक दल के विधायक है जबकि तीसरी सीट कैराना पर सपा विधायक नाहिद हसन हैं तो वही बागपत की तीन विधानसभा सीटों में से एक छपरौली पर राष्ट्रीय लोकदल के तथा दो बागपत और बड़ौत पर भाजपा के विधायक चुने गए थे।

अब राष्ट्रीय लोकदल को लगता है कि बागपत और बिजनौर लोकसभा सीट जीतने के बाद अगर मुजफ्फरनगर में भाजपा के संजीव बालियान चुनाव हारते हैं तो जनप्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रीय लोकदल संख्या बल के हिसाब से पूरी तरह से प्रभावी रहेगी क्योंकि शामली, मुजफ्फरनगर और बागपत की 12 विधानसभा सीटों में से सात विधानसभा सीटों पर रालोद , दो पर समाजवादी पार्टी तथा तीन सीटों पर भाजपा के विधायक जीते हुए हैं। ऐसे में अगर संजीव बालियान चुनाव हारते हैं तो राष्ट्रीय लोकदल इन तीनों जिलों में जनप्रतिनिधि के रूप में दो सांसद तथा 7 विधायकों के बलबूते सबसे बड़ा दल रहेगा और कहीं ना कहीं वह इन तीनों जिलों में अपना प्रभाव कायम करने में सफल रहेंगे क्योंकि रालोद को पता पता है अगर संजीव बालियान मुजफ्फरनगर से चुनाव जीत जाते हैं तो वह राष्ट्रीय लोकदल को मजबूत होने में बहुत बड़ा अड़ंगा है । सूत्रों का कहना है इसकी वजह है संजीव बालियान ने अपने 10 साल के कार्यकाल में भाजपा के साथ-साथ अपनी एक मजबूत टीम स्थापित की है जो राष्ट्रीय लोक दल के कार्यकर्ताओं से आमने-सामने लड़ने में सक्षम है तो राष्ट्रीय लोक दल के हलकों में यही चर्चा है कि संजीव बालियान अगर चुनाव हारते हैं तो इन तीनों जिलों में राष्ट्रीय लोक दल का दबदबा रहेगा। इसी वजह से अंदरखाने राष्ट्रीय लोकदल संजीव बालियान को हराने में जुटी हुई है। अब यह तो आने वाला वक्त ही बताया कि संजीव बालियान चुनाव हारते हैं या नहीं या राष्ट्रीय लोक दल अपने मंसूबे में कामयाब होती है या नहीं।

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