RLD से पुरानी अदावत- हरेंद्र की मुस्तैदी क्या संजीव के लिए होगा *संकट*

RLD से पुरानी अदावत- हरेंद्र की मुस्तैदी क्या संजीव के लिए होगा *संकट*

मुजफ्फरनगर। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी के डॉक्टर संजीव बालियान और समाजवादी पार्टी गठबंधन के हरेंद्र मलिक के बीच चुनावी रण का मैदान सज चुका है। जीत किसके हिस्से में आएगी यह तो अभी आने वाले समय में ही क्लियर हो पाएगा लेकिन राष्ट्रीय लोकदल के कार्यकर्ताओं की टीम संजीव बालियान से पुरानी अदावत और 2019 में गठबंधन के टिकट पर लड़े चौधरी अजीत सिंह से सपा गठबंधन के प्रत्याशी हरेंद्र मलिक का ज्यादा मुस्तैदी से चुनाव में डटना क्या संजीव बालियान के लिए चुनावी संकट खड़ा कर सकता है। पढ़िए खोजी न्यूज की यह विशेष रिपोर्ट।

मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर जहां भाजपा ने संजीव बालियान पर तीसरी बार दांव लगाया है वहीं समाजवादी पार्टी - कांग्रेस गठबंधन ने चार बार के विधायक और राज्यसभा के सांसद रहे हरेंद्र मलिक पर अपना भरोसा जताया है। 2019 में गठबंधन के साथ रहने वाले राष्ट्रीय लोक दल ने अब अपना पाला बदलते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया है। रालोद के भाजपा से हाथ मिलाने के बाद संजीव बालियान का पक्ष मजबूत दिखाई पड़ रहा है लेकिन रालोद के कर्मठ कार्यकर्ताओं से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बड़े नेताओं ने तो भाजपा से गठबंधन कर लिया है लेकिन गांव दर गांव पिछले 10 साल से टीम संजीव बालियान और रालोद कार्यकर्ताओं के बीच चली लंबी अदावत को कार्यकर्ता कैसे भूल सकता है।

दरअसल 2014 में मुजफ्फरनगर दंगों से प्रभावित मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भाजपा ने संजीव बालियान को अपना प्रत्याशी घोषित किया था जबकि बहुजन समाज पार्टी से तत्कालीन सांसद कादिर राना चुनावी मैदान में थे। इस चुनाव में संजीव बालियान ने 6,53,391 वोट पाकर लगभग 4 लाख वोटो से कादिर राणा को चुनावी मैदान में पटकनी थी। 5 साल तक संजीव बालियान ने मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के प्रत्येक गांव में अपनी टीम खड़ी कर ली थी, जिसको टीम संजीव बालियान कहा जाता है।

इसी बीच 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। राष्ट्रीय लोकदल इस चुनाव में बुरी तरह पराजित हो चुका था। सपा के साथ गठबंधन के चलते राष्ट्रीय लोकदल और भाजपा के कार्यकर्ता आमने-सामने होने लगे थे। 2022 के विधानसभा चुनाव आते-आते टीम संजीव बालियान और राष्ट्रीय लोकदल के कार्यकर्ताओं में तनातनी इतनी बढ़ी कि कई गांव में टीम संजीव बालियान और राष्ट्रीय लोक दल के कार्यकर्ताओं का आमना सामने भी हुआ। भाजपा और राष्ट्रीय लोक दल के कार्यकर्ताओं में टीस इतनी बढ़ गई थी कि भाजपा कार्यकर्ता राष्ट्रीय लोक दल के आम कार्यकर्ताओं को रलदू के नाम से पुकार कर चुटीले कमेंट करते रहते थे। सोशल मीडिया पर दोनों पक्ष एक दूसरे के खिलाफ इस तरह के शब्दों का प्रयोग करते रहे।

ब्लॉक प्रमुख चुनाव में भी नामांकन भरने से लेकर मतदान तक रालोद और भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच तनातनी चलती रहती थी। रालोद के सूत्रों का कहना है कि भाजपा से गठबंधन के बाद प्रदेश से लेकर जिले भर के नेता तो भाजपा के साथ एडजस्ट हो सकते हैं लेकिन जो कार्यकर्ता गांव में मौजूद है और जिसका 10 साल तक लगातार टीम संजीव बालियान से सामना होता रहा, वह अपनी टीस को कैसे भूल सकता है।

दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव आते-आते गठबंधन ने चौधरी अजीत सिंह को संजीव बालियान के सामने चुनावी मैदान में उतारा। चौधरी अजीत सिंह के आसपास घेरा बनाए हुए उनकी टीम ने चुनाव से पहले ही उनकी जीत सुनिश्चित बतानी शुरू कर दी थी। सूत्रों का कहना है कि उस समय चौधरी अजीत सिंह के पास जो टीम मौजूद थी वह चौधरी अजीत सिंह को 3 से 4 लाख वोटो से चुनाव जीतने का सपना दिखा रही थी। यही वजह रही कि भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ गठबंधन में शामिल अन्य दलों के नेताओं को भी चौधरी अजीत सिंह के दरबार में भाव नहीं दिया जाता था। इधर संजीव बालियान लगातार चुनावी मैदान में डटे हुए थे। वह अपनी एक-एक वोट को संवारने में जुटे थे। संजीव बालियान की इतनी कड़ी मेहनत के बाद भी उनकी जीत 2014 के 4 लाख के मुकाबले केवल 6500 वोटो तक सीमित रह गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में अजीत सिंह की हार को राष्ट्रीय लोकदल के कार्यकर्ता हजम नहीं कर पा रहे थे।

अब राष्ट्रीय लोकदल ने भले ही भाजपा से हाथ मिला लिया हो लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन ने चार बार के विधायक रहे और पूर्व राज्यसभा सांसद हरेंद्र मलिक को मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भाजपा के संजीव बालियान के सामने उतारा है। हरेंद्र मलिक के चुनावी मैदान में आने से संजीव बालियान की हैट्रिक पर क्या विराम लगेगा, इसकी चर्चाएं राजनीतिक हल्कों में चल रही है। दरअसल 2019 में चौधरी अजीत सिंह के आसपास की टीम ने जिस तरह से उन्हें जीत के भ्रम के जाल में फंसाए रखा और उनको नजदीकी मुकाबले में हरवा दिया था उससे इतर हरेंद्र मलिक अपनी टीम के साथ चुनावी रण में डटे हुए हैं। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट का हिस्सा चरथावल विधानसभा सीट से उनके बेटे पंकज मलिक विधायक हैं । हरेंद्र मलिक भी इसी लोकसभा सीट का हिस्सा रही खतौली और बघरा विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं। इसके साथ ही हरेंद्र मलिक दो बार मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इसलिए मुजफ्फरनगर लोकसभा के हर गांव में उनकी एक टीम मौजूद है। अब देखना यह होगा कि 2014 में 4 लाख वोटों से हुई जीत के बाद 2019 में यह फर्क केवल 6500 वोटो को रह गया था तो अब जब हरेंद्र मलिक जैसा सक्रिय व्यक्ति गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में संजीव बालियान को चुनौती देने मैदान में उतरे हैं तो क्या वह इसमें सफल हो पाएंगे। बताया जाता है कि हरेंद्र मलिक का पूरा दामोदर अब राष्ट्रीय लोक दल के उन कार्यकर्ताओं पर टिका है जो भाजपा के साथ गठबंधन के बाद टीम संजीव बालियान के सामने खुद को असहाय महसूस कर रहा है।

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