आज के ही दिन 2008 को सैम मानेकशॉ ने अस्पताल में ली थी अंन्तिम सांस

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सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ 3 अप्रैल 1914 को भारतीय सेना के अध्यक्ष बने थे। मानेकशॉ खुलकर अपनी बात कहने वालों में से थे। उन्होंने एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मैडम कहने से इन्कार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि यह संबोधन एक खास वर्ग के लिए होता है। मानेकशॉ ने कहा कि वह उन्हें प्रधानमंत्री ही कहेगे। इनके नेतृत्व में भारत ने सन् 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजय प्राप्त की थी। भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय के परिणामस्वरूप ही बंगलादेश का जन्म हुआ था। मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका परिवार गुजरात के शहर वलसाड से पंजाब आ गया था। मानेकशॉ ने प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में पाई, बाद में वे नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिल हो गए। वे देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच के लिए चुने गए 40 छात्रों में से एक थे। वहां से वे कमीशन प्राप्ति के बाद भारतीय सेना में भर्ती हुए। 1969 को उन्हें सेनाध्यक्ष बनाया गया और 1973 में फील्ड मार्शल का सम्मान प्रदान किया गया। 1973 में सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे वेलिंगटन, तमिलनाडु में बस गए थे। वृद्धावस्था में उन्हें फेफड़े संबंधी बीमारी के चलते वे कोमा में चले गए थे और वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल के आईसीयू में 27 जून 2008 की रात 12.30 बजे उनकी मृत्यु हुई थी।



सैम मानेकशॉ हकीकत कहने से कभी घबराते नहीं थे। एक बार जब इंदिरा गांधी ने असमय पूर्वी पाकिस्तान पर हमले के लिए कहा तो उन्होंने जवाब दिया कि इस स्थिति में हार तय है। उनके इस जवाब से इंदिरा गांधी को गुस्सा आ गया। उनके गुस्से की परवाह किए बगैर मानेकशॉ ने कहा था कि प्रधानमंत्री, क्या आप चाहती हैं कि आपके मुंह खोलने से पहले मैं कोई बहाना बनाकर अपना इस्तीफा सौंप दूं।

17वीं इंफेंट्री डिवीजन में तैनात सैम ने पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया था। उनको 1942 के दौरान बर्मा में जापान से लड़ते हुए सात गोलियां लगी थीं, फिर भी वह जिंदा रहे। जब हॉस्पिटल में सर्जन ने उनसे पूछा कि उनको क्या हुआ था तो मानेकशॉ ने जवाब दिया था कि मुझे खच्चर ने लात मार दिया था। स्वस्थ होने पर मानेकशॉ पहले स्टाफ कॉलेज क्वेटा, फिर जनरल स्लिम्स की 14वीं सेना के 12 फ्रंटियर राइफल फोर्स में लेफ्टिनेंट बनकर बर्मा में भीषण लड़ाई के दौरान फिर से बुरी तरह घायल हुए थे। 1946 में वे फस्र्ट ग्रेड स्टॉफ ऑफिसर बनकर मिलिट्री आपरेशंस डायरेक्ट्रेट में सेवारत रहे। भारत के विभाजन के बाद 1947-48 की भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 की लड़ाई में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सैम को नागालैंड समस्या को सुलझाने के अविस्मरणीय योगदान के लिए 1968 में पद्मभूषण से नवाजा गया। 7 जून 1969 को सैम मानेकशॉ ने जनरल कुमारमंगलम के बाद भारत के 8वें चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ बने। देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें 1972 में पद्मविभूषण तथा 1 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से अलंकृत किया गया। चार दशकों तक देश की सेवा करने के बाद सैम बहादुर 15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।



सैम मानेकशॉ की बोल्डनेस, लोकप्रियता और ताकत का अंदाजा इस बात से बखूबी लगाया जा सकता है कि इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते एक बार सेना द्वारा तख्तापलट की अफवाह फैल गयी थी, तब इंदिरा गांधी ने इस बारे में सैम मानेकशॉ से जवाब-तलब किया था। इस पर उन्होंने अपने बोल्ड अंदाज में ही जवाब दिया था कि आप अपने काम पर ध्यान दो, मैं अपने काम पर ध्यान देता हूं। राजनीति में मैं उस समय तक कोई हस्तक्षेप नहीं करूंगा, जब तक कोई मेरे मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

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