रमज़ान और हमारी ज़िम्मेदारियां

रमज़ान और हमारी ज़िम्मेदारियां
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लेखक खोजी न्यूज़ के प्रधान संपादक एंव पैगाम ए इंसानियत के अध्यक्ष भी है

रमज़ान का मुबारक महीना रहमतों बरकतों और जहन्नुम से आज़ादी का महीना है तमाम बड़ी आसमानी किताबें जैसे तौरैत, ज़बूर और इंजील इसी महीने में नाजिल हुई नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर पहली वही (ईश्वरीय संदेश) ग़ारे हिरा मे इसी महीने में नाज़िल हुई। क़ुरआन भी लोहे महफूज़ से इसी महीने में नाज़िल हुआ और इस मुबारक महीने की सबसे ख़ास रात लैलतुल कद्र यानि शबे कद्र मे मुकम्मल हुआ।

दरअसल रमज़ान के मायने जलकर राख हो जाने के हैं क्योंकि रमजान के महीने में जब आदमी सच्चे दिल के साथ अल्लाह के सामने झुक कर अपने गुनाहो की तौबा करता है और अपने माल की ज़कात निकालता है, खैरात करता है तो आदमी के गुनाह जलकर राख हो जाते हैं, इसी वजह से यह महीना गुनाहों को जलाकर आदमी को बिल्कुल साफ-सुथरा कर देने वाला महीना है। यह वह मुबारक महीना है जिसका नाम खुद अल्लाह तबारक वताअला ने रखा अरबी के बाकी महीने जैसे मोहर्रम, सफर,रबी उल अव्वल, रबी उस्सानी, जुमादी उल अव्वल, जुमादी उस सानी, रजब, शाबान, शव्वाल, ज़ी क़ादा, जिल हिज्जा इंसानों के रखे हुए नाम हैं लेकिन रमज़ान का मुबारक महीना अल्लाह ताला का महीना है और इसीलिए अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने फरमाया कि रोज़े का बदला मै ख़ुद हूं।

रमज़ान के महीने में आदमी को रोज़ा रखने के हुक्म के पीछे उसके अपने गुनाहो की सफाई तो है ही बल्कि रोज़े की हालत मे भूख का अहसास इस बात की तरफ इशारा भी है कि हम ग़रीब परेशान हाल लोगो की भूख को महसूस कर उनकी मदद का ज़रिया बन सके। इसके अलावा एक महीने के रोज़े साइंटिफिक तौर पर हमारे जिस्म की अंदरूनी बीमारियों को जड़ से खत्म करने का आसान तरीका भी है, जिसके बारे मे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और बहुत से साइंसदानो की तहक़ीक़ से किताबे भरी पड़ी है। मतलब ये कि रमज़ान के महीने मे रोज़ेदार सिर्फ अपने लिए ही इबादत करके सुकून हासिल नहीं करता बल्कि ज़कात, फ़ितरा और दूसरी खैरात करके दूसरे इंसानो के लिए भी राहत का सामान मुहैया कराता है।अपने पास जमा दौलत,ज़मीन,सोना चांदी का चालीसवां हिस्सा यानि ढाई प्रसेंट ग़रीब मिसकीनो के लिये निकालना पैसे वालो पर इसीलिए लाज़िम किया गया है ताकि ग़रीब और ज़रूरतमंद लोग भी खुशी खुशी ईद मना सके

कैसे बिताएं हमने पिछले रमजान

लेकिन बड़े अफसोस के साथ ये बात भी लिखनी यहां जरूरी हो जाती है कि हम अगर ग़ौर करें और सोचें कि गये सालों मे जो रमज़ान बीतें है उनमे हमने इस मुबारक महीने की कितनी कद्र की है । रोज़ा रखकर ना अपनी ज़बान को दूसरो की बुराईयों से बचा पाये और ना अपनी आंखो को ही बुराईयों को देखने से महफूज़ कर पाये।और ना ही अपने दिल को किन्हा और बुग़ज़ से दूर ही कर पाये झूठ दिन भर मे कितनी बार बोल जायें इसका हिसाब रखना ही मुश्किल है क्योंकि ये आदत मे शुमार जो हो गया है।

ना इबादत का खयाल था ना रोज़े की अज़मत का, ज़कात देने वालों की तादाद पहली बात तो ना के बराबर थी, और जो थी भी वो इसे बोझ समझते हुए जरूरतमंद को ना ढूंढ कर इस पैसे को रसीद मे तब्दील करना ज्यादा आसान समझते थे और कुछ लोग अपनी ज़कात को इतने हिस्सों मे तकसीम कर देते है की वो किसी भी काम की नही रहती थी । शायद यही वजह है कि इस्लाम धर्म के 1400 सालों के इतिहास मे मुसलमानों के लिये इस तरह का रमज़ान शायद ही पहले कभी आया हो इस बार मुसलमान रमज़ान की तमाम रौंनकों से महरूम है कोरोना महामारी के चलते जमाअत से नमाज़,नफिल नमाज़,तिलावत और तराबीह के लिये लोगो के मस्जिद मे इकट्ठा होने पर पाबंदी है एहतियातन सभी लोग नमाज़े अपने घरों पर ही अदा कर रहे हैं। ज़ाहिर है मस्जिद मे इबादत का जो मज़ा है वो घर मे नही है। इसे अगर धार्मिक दृष्टि से देखा जाये तो ये रमज़ान पूरी दुनियां के मुसलमानों को अपने अंदर झांकने का इशारा करता है कि हमसे ऐसा कौन सा गुनाह हो गया जो ऊपर वाले ने अपने घर के दरवाज़े हमारे लिये बंद कर दिये मक्का से लेकर मदीना तक पूरी दुनियां मे आज मुसलमान चाहकर भी मस्जिद मे नमाज़ो से महरूम है।

लेकिन इस रमज़ान का सकारात्मक पहलू ये भी है कि पिछले रमज़ान के महीनों मे हम पर जो पारिवारिक व सामाजिक ज़िम्मेदारियां हुआ करती थी जिनकी वजह से हम इस मुबारक महीने मे चाहते हुए भी वो इबादत नही कर पाते थे जिसका हक था आज हम उन सब ज़िम्मेदारियों से बरी है ना आफिस जाने की फिक्र है ना स्कूल से बच्चो को लाने की ना नौकरी पर जाना है और ना दुकान पर यानि लाॅकडाउन एक अवसर है जिसमे मुसलमान रमज़ान के पवित्र महीने मे पूरी लगन के साथ ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करे और गिड़गिड़ाकर अपने रब से अपने गुनाहो की तौबा करे।

ज़कात को ऐसे करें खर्च

ज़कात के मौज़ू पर मै पहले भी कई बार लिख चुका हूं कि मुसलमान अपनी ज़कात पूरी पूरी अदा करे हम भले ही अपनी ज़कात दस जगह ना बांटकर पांच लोगो को ही दे लेकिन कोशिश करे कि जिसे दे उसका छोटा मोटा रोज़गार करा दे ताकि वो आगे किसी के सामने हाथ ना फैलाये अपनी ज़कात को अपनी क़ौम के ग़रीब बच्चो को तालीम दिलाने मे खर्च करे ताकि हमारी क़ौम आगे बढ़ सके इसका सबसे आसान तरीक़ा ज़कात फाउंडेशन है जिसके ज़रिये हर साल हमारी क़ौम के नौजवान आईएएस और आईपीएस बनकर निकल रहें है अगर हमारी इतनी भी हैसियत ना हो तो हम कम से कम एक बच्चे को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी एक साल के लिये ही ले ले।बल्कि अगर मुमकिन हो तो हर शहर मे एक बैतुलमाल बने जिसमे शहर के जिममेदार लोग शामिल हो और वो ज़कात का पैसा इकट्ठा कर ईमानदारी से उसे ग़रीबो को रोज़गार देने, ग़रीब बेटियों की शादी कराने और ग़रीब बच्चो को तालीम याफ्ता बनाने मे खर्च करें। यहां ये बात बतानी बहुत ज़रूरी हो जाती है कि आप की ज़कात पर सबसे पहला हक आपके सगे रिश्तेदारों फिर आस पडोस का है उसके बाद दूसरे लोगो को है।

पड़ोसियों का रखे ध्यान , इंसानियत की करें मदद

फिलहाल देश मे चल रहे लाॅकडाउन के कारण बहुत से लोगो के सामने खाने पीने की समस्या है अपने आस पास ऐसे लोगो का ध्यान रखे जो सख्त जरूरत होते हुए भी अपनी इज्ज़त की खातिर किसी से सवाल नही कर सकते उनकी चुपचाप मदद करने की कोशिश करें मुश्किल के इस वक्त मे अपनी इमदाद मे धार्मिक भेदभाव को बीच मे ना आने दे और इंसानियत की सेवा करें। अगर इन सब हालात पर ग़ौर किया जाये तो समझ मे आता है कि ये सारी खराबी दीन से दूरी अख्तियार करने की वजह से है और दीन की कुर्बत तब हासिल होगी जब हम दीन को समझेंगे और इसका सबसे आसान तरीका ये है कि आप जिस ज़बान मे भी चाहे सरकारे दो आलम सल्लल्लाहो अलेइहि वसल्लम की हयात ए मुबारक को अपने बीवी बच्चो को सामने बैठाकर पढें और सीखे कि हमारे आक़ा ने हमे जिंदगी जीने के क्या आदाब सिखाये है जिस दिन हमने अपने नबी की सुन्नतो पर अमल करना शुरू कर दिया आप देखेगे कि ज़िन्दगी आसान और पुरसुकून होना शुरू हो जायेगी और हम मुसलमान जो पूरी दुनियां मे ज़लीलो ख्वार हो रहे है इज्ज़त हमारे कदम चूमेगी आज हमे सिर्फ ये फिक्र होती है कि हमारा चाल चलन या हमारे कोई भी गलत कदम हमारे घर हमारे खानदान की बदनामी का सबब ना बन जाये जिससे हमारे बाप दादा नाराज़ ना हो जाये लेकिन अफसोस हम ये नही सोचते कि दुनियां के सामने हमारे जरिये किये जा रहे गलत कामों से हमारी पूरी कौम और हमारे नबी जिसकि हम उम्मत है उसकी कितनी बदनामी हो रही है।हमे कोशिश करनी चाहिए कि हमारे किसी भी काम से हमारे किसी भी मुस्लिम या ग़ैर मुस्लिम भाई को ज़रा भी परेशानी नही होनी चाहिए कारोबार हो या सोशल एक्टिविटी लोग आपके व्यवहार को देखकर कहे कि ये मुसलमान है।

रमज़ान का आखिरी अशरा नज़दीक

लाॅकडाउन के दौरान हर व्यक्ति अपने घर मे है तो हर मुस्लिम के लिये ये एक अवसर है कि रमज़ान के आखिरी दस दिनो मे अपने आपको आईसोलेट यानि एकांतवास यानि एतकाफ मे ले जाये और पूरी लगन के साथ ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करे और गिड़गिड़ाकर अपने रब से अपने गुनाहो की तौबा करे। शबे कद्र मे फरिश्ते ज़मीन पर उतरकर इबादत कर रहे लोगो की दुआ पर आमीन कहतें है इस रात मे हर किसी की दुआ कबूल होती है केवल चार तरह के लोगो (एक शराब पीने वाला दूसरा मां बाप का नाफरमान,तीसरा रिश्तेदारों से लड़ने वाला और चौथा दिल मे कीन्हा यानि दूसरो को नुकसान का इरादा रखने वाला) की दुआ कुबूल नही होती इसलिये हमे चाहिये कि इन चारो बातों की अपने रब से मांफी के साथ साथ ये अपने आप से ये अहद करें कि पिछले रमज़ान मे जो लापरवाही और कोताहियां हमसे हुई है वो आईंदा नही करेंगे।

मुल्क और कोरोना से बचाव के लिए मांगे दुआ

रमज़ान के इस पवित्र माह मे अपनी और अपने मुल्क और पूरी दुनियां और परेशान हाल मुसलमानों की हिफाज़त और सलामती व अपने देश से कोरोना महामारी के खात्मे के लिये दुआ करे और उन लोगो को ख़ास दुआ मे याद रखें जो अपनी जान की परवाह ना करते हुए हम सबकी सुरक्षा के लिये अपना परिवार छोड़कर रात दिन मेहनत कर रहें हैं। इस माहे मुबारक मे अपने रब से खूब मांगे क्योकिं अल्लाह मांगने को पसंद फरमाता है और रो-रो कर अपने गुनाहो की तौबा करें और अपने रूठे रब को मना लें जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।

याद रह जाये तो इस गुनाहगार को भी अपनी दुआ मे ज़रूर याद रखें

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