जनसंख्या के प्रति कितने जागरूक हुए हम!

जनसंख्या के प्रति कितने जागरूक हुए हम!

लखनऊ। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय विश्व की कुल जनसंख्या 7.7 बिलियन यानी कि 777 करोड़ है। जनसंख्या के मामले में चीन पहले स्थान पर हैं और दूसरे नंबर पर भारत जबकि अमेरिका तीसरे नंबर पर है।

हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। यह दिन पूरी दुनिया में बीते 30 सालों से बढ़ती जनसंख्या के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन लोगों को परिवार नियोजन, लैंगिक समानता, मानवाधिकार और मातृत्व स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी जाती है। विश्व जनसंख्या दिवस के दिन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है जिनमें जनसंख्या वृद्धि की वजह से होने वाले खतरे के प्रति लोगों को आगाह किया जाता है ताकि जनता जागरूक हो सकें और जनसंख्या पर कंट्रोल कर सकें। बढ़ती जनसंख्या दुनिया के कई देशों के सामने बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है। खासकर विकासशील देशों में 'जनसंख्या विस्फोट' गहरी चिंता का विषय है। कोरोना संकट काल में इस साल जनसंख्या स्थिरता पखवाड़ा की थीम 'आपदा में भी परिवार नियोजन की तैयारी सक्षम राष्ट्र और परिवार की पूरी जिम्मेदारी' रखी गई है।

11 जुलाई से 31 जुलाई तक चलने वाले पखवारे में जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए समाज को जागरूक किया जाएगा। परिवार कल्याण कार्यक्रमों से लोगों को जोड़ने के लिए प्रचार-प्रसार पर जोर रहेगा। हाल ही में यूएनएफपीए के एक शोध में कहा गया है कि अगर लॉकडाउन 6 महीने तक जारी रहता है, और स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ी गड़बड़ी होती है, तो कम और मध्यम आय वाले देशों में 47 मिलियन महिलाओं को आधुनिक गर्भ निरोधक नहीं मिल पाएंगे। वहीं पिछले साल विश्व जनसंख्या दिवस की थीम परिवार नियोजन थी। तेजी से जनसंख्या की वृद्धि कई वजहों से समाज और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। गैरकानूनी होते हुई भी देश के कई पिछड़े इलाकों में आज बाल विवाह की परंपरा है। इसकी वजह से कम उम्र में ही महिलाएं मां बन जाती हैं जो कि बच्चे और मां दोनों के स्वास्थ्य के लिए घातक है।

विश्व जनसंख्या दिवस मनाने की घोषणा सर्वप्रथम 11 जुलाई 1989 को की गई थी। सन 1987 को जब विश्व की जनसंख्या का आंकड़ा करीब 5 अरब हुआ था, तो बढ़ती जनसंख्या संबंधी मामलों पर लोगों को जागरूक करने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस को मनाने का निर्णय लिया गया। इस दिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई क्रियाकलाप किए जाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय विश्व की कुल जनसंख्या 7.7 बिलियन यानी कि 777 करोड़ है। यूएन का अनुमान है कि पूरी दुनिया की आबादी 2023 तक 8 अरब और 2056 तक 10 अरब को पार कर देगी। विश्व में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश चीन हैं, इसकी कुल संख्या करीब 141 करोड़ है। जनसंख्या के मामले में चीन पहले स्थान पर हैं और दूसरे नंबर पर भारत जबकि अमेरिका तीसरे नंबर पर है और आज के दौर में सबसे तेज गति से जनसंख्या वृद्धि करने वाला देश नाइजीरिया है।

चीन और भारत दोनों देशों में पूरी दुनिया की आबादी के तीस फीसदी से भी ज्यादा (करीब 35.6) लोग रहते हैं। आज के दौर में सबसे तेज गति से जनसंख्या वृद्धि करने वाला देश नाइजीरिया है। जनसंख्या के मामले में नाइजीरिया भले ही अभी 7वें नंबर पर हो, लेकिन 2050 से पहले यह अमेरिका को पीछे छोड़ कर तीसरे स्थान पर पहुंच सकता है। साल 2010 से 2015 के बीच दुनिया की 46 फीसदी आबादी 83 देशों में रही, जहां प्रजनन स्तर 2.1 की सीमा से नीचे था और तो और दुनियाभर में बुजुर्गों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। 1950 में बुजुर्गों से कहीं ज्यादा संख्या में युवा थे। साल 2017 में कम युवा और अधिक बुजुर्ग लोग हैं। 2050 तक संख्या और भी ज्यादा हो जाएगी।

विश्व जनसंख्या दिवस, पिछले 30 सालों से मनाया जा रहा है लेकिन जनसंख्या विस्फोट पर अब तक नियंत्रण नहीं लगाया जा सका है। यह एक ऐसा विषय है, जिसमें न तो चमक-दमक है, न रुपए-पैसे हैं और न ही वोट और राजनीति और जहां राजनीति नहीं वहां अहमियत नहीं और तो और इस विषय में कोई टीआरपी भी नहीं है यही वजह है कि स्थिति जस की तस बनी हुई है। हर साल 11 जुलाई को जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कई कार्यक्रम होते हैं लेकिन ये अखबारों की सुर्खियों से ज्यादा कुछ नहीं होते। बचपन में आप में से कई लोगों ने स्कूलों में भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या पर निबंध जरूर लिखा होगा, लेकिन असल में ये समस्या अखबारों की सुर्खियों की तरह स्कूल में भी स्कूली किताबों से आगे बढ़ ही नहीं पाई। बच्चे जनसंख्या पर निबंध लिखते रहे और नेता गोष्ठियां और सेमीनार में हिस्सा लेते रहे और जनसंख्या बढ़ती रही। कई सालों से जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती रहीं, हम दो हमारे दो के नारे भी चले, परिवार नियोजन यानी फैमली प्लानिंग भी हुई, बड़े-बड़े अभिनेता और अभिनेत्रियां सरकारी विज्ञापनों से पैसे कमाकर भी चले गए, लेकिन जनसंख्या का बढ़ना रुका नहीं।

आप अगर ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि भारत की हर समस्या के पीछे जो मूल समस्या है, वो है बढ़ती हुई आबादी। गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, कमजोर शिक्षा व्यवस्था, कमजोर स्वास्थ्य सेवाएं, बढ़ते हुए अपराध, प्रदूषण, पीने के लिए साफ पानी की कमी और गंदगी... इन सारी समस्याओं की जड़ में एक मूल समस्या है, जिसका नाम है जनसंख्या। यहां तक कि आरक्षण की समस्या भी जनसंख्या की वजह से पैदा हुई है। ये तो तय है कि हमारी धरती का आकार नहीं बढ़ने जा रहा। यहां मौजूद संसाधन भी अब बढ़ने वाले नहीं, जैसे पानी, खेती के लायक जमीन। दरअसल, तेजी से बढ़ती दुनिया की आबादी ने हमारे सामने कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। जानकार अक्सर चेतावनी देते हैं कि बढ़ती आबादी, इंसानों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। आज दुनिया की एक बड़ी आबादी भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत मूल सुविधाओं से दूर है और इसकी एक प्रमुख वजह अनियंत्रित आबादी भी है। जनसंख्या वृद्धि पर काबू पाना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं होता। दुनिया में चारों ओर बढ़ती आबादी का शोर है। जनसंख्या विस्फोट के खतरों की चर्चा हो रही है। तमाम देश, बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने की बातें कर रहे हैं। कुदरत के सीमित संसाधनों का हवाला दिया जा रहा है लेकिन जनसंख्या वृद्धि एक चुनौती बनी हुई है जिस वजह से जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम देश और दुनिया को भोगने पड़ रहे हैं। अधिक जनसंख्या के कारण बेरोजगारी की विकराल समस्या उत्पन्न हो गयी है। लोगों के आवास के लिए कृषि योग्य भूमि और जंगलों को उजाड़ा जा रहा है। यदि जनसंख्या विस्फोट यूं ही होता रहा तो लोगों के समक्ष रोटी कपड़ा और मकान की विकराल स्थिति पैदा होती चली जाएगी। इससे बचने का एक मात्र उपाय यही है कि हम येन केन प्रकारेण बढ़ती आबादी को रोकें, नहीं तो विकास का स्थान विनाश को लेते बहुत ज्यादा देर नहीं लगेगी।

(नाज़नींन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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