71वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का सन्देश

71वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का सन्देश
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मेरे प्यारे देशवासियो,

71वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, मैं देश और विदेश में बसे, भारत के सभी लोगों को, हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

आज से सात दशक पहले, 26 जनवरी को, हमारा संविधान लागू हुआ था। उसके पहले ही इस तारीख का विशेष महत्व स्थापित हो चुका था। 'पूर्ण स्वराज' का संकल्प लेने के बाद हमारे देशवासी, 1930 से 1947 तक, प्रतिवर्ष 26 जनवरी को 'पूर्ण स्वराज दिवस' मनाया करते थे। इसीलिए सन 1950 में उसी ऐतिहासिक दिवस पर, हम भारत के लोगों ने, संविधान के आदर्शों के प्रति आस्था व्यक्त करते हुए, एक गणतंत्र के रूप में, अपनी यात्रा शुरू की। और तब से प्रतिवर्ष 26 जनवरी को हम गणतन्त्र दिवस मनाते हैं।

आधुनिक गणराज्य की शासन व्यवस्था के तीन अंग होते हैं - विधायिका, कार्य-पालिका और न्याय-पालिका। ये तीनों अंग स्वायत्त होते हुए भी एक दूसरे से जुड़े होते हैं और एक दूसरे पर आधारित भी होते हैं। परंतु वास्तव में तो लोगों से ही राष्ट्र बनता है। 'हम भारत के लोग' ही अपने गणतंत्र का संचालन करते हैं। अपने साझा भविष्य के बारे में निर्णय लेने की वास्तविक शक्ति हम भारत के लोगों में ही निहित है।


हमारे संविधान ने, हम सब को एक स्वाधीन लोकतंत्र के नागरिक के रूप में कुछ अधिकार प्रदान किए हैं। लेकिन संविधान के अंतर्गत ही, हम सब ने यह ज़िम्मेदारी भी ली है कि हम न्याय, स्वतंत्रता और समानता तथा भाईचारे के मूलभूत लोकतान्त्रिक आदर्शों के प्रति सदैव प्रतिबद्ध रहें। राष्ट्र के निरंतर विकास तथा परस्पर भाईचारे के लिए, यही सबसे उत्तम मार्ग है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन-मूल्यों को अपनाने से, इन संवैधानिक आदर्शों का अनुपालन हम सबके लिए और भी सरल हो जाता है। ऐसा करते हुए, हम सब, महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को और भी सार्थक आयाम दे सकेंगे।


मेरे प्रिय देशवासियो,

जन-कल्याण के लिए, सरकार ने कई अभियान चलाए हैं। यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि नागरिकों ने, स्वेच्छा से उन अभियानों को, लोकप्रिय जन-आंदोलनों का रूप दिया है। जनता की भागीदारी के कारण 'स्वच्छ भारत अभियान' ने बहुत ही कम समय में प्रभावशाली सफलता हासिल की है। भागीदारी की यही भावना अन्य क्षेत्रों में किए जा रहे प्रयासों में भी दिखाई देती है - चाहे रसोई गैस की सबसिडी को छोड़ना हो, या फिर डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना हो। 'प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना' की उपलब्धियां गर्व करने योग्य हैं। लक्ष्य को पूरा करते हुए, 8 करोड़ लाभार्थियों को इस योजना में शामिल किया जा चुका है। ऐसा होने से, जरूरतमंद लोगों को अब स्वच्छ ईंधन की सुविधा मिल पा रही है। 'प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना' अर्थात 'सौभाग्य योजना' से लोगों के जीवन में नई रोशनी आई है। 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि' के माध्यम से लगभग 14 करोड़ से अधिक किसान भाई-बहन प्रति वर्ष 6 हजार रुपए की न्यूनतम आय प्राप्त करने के हकदार बने हैं। इससे हमारे अन्नदाताओं को सम्मानपूर्वक जीवन बिताने में सहायता मिल रही है।

बढ़ते हुए जल-संकट का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए 'जलशक्ति मंत्रालय' का गठन किया गया है तथा जल संरक्षण एवं प्रबंधन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। मुझे विश्वास है कि 'जल जीवन मिशन' भी 'स्वच्छ भारत अभियान' की तरह ही एक जन आंदोलन का रूप लेगा।

सरकार की प्रत्येक नीति के पीछे, जरूरतमंद लोगों के कल्याण के साथ-साथ यह भावना भी होती है कि "सबसे पहले राष्ट्र हमारा।" जी.एस.टी. के लागू हो जाने से 'एक देश, एक कर, एक बाजार' की अवधारणा को साकार रूप मिल सका है। इसी के साथ 'ई-नाम' योजना द्वारा भी 'एक राष्ट्र के लिए एक बाजार' बनाने की प्रक्रिया मजबूत बनाई जा रही है, जिससे किसानों को लाभ पहुंचेगा। हम देश के हर हिस्से के सम्पूर्ण विकास के लिए निरंतर प्रयासरत हैं – चाहे वह जम्मू-कश्मीर व लद्दाख हो, पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य हों या हिंद महासागर में स्थित हमारे द्वीप-समूह हों।

देश के विकास के लिए एक सुदृढ़ आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था का होना भी जरूरी है। इसीलिए सरकार ने आंतरिक सुरक्षा को और मजबूत बनाने के लिए अनेक ठोस कदम उठाए हैं।

स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं के सुलभ होने को प्रायः सुशासन की आधारशिला समझा जाता है। पिछले सात दशकों के दौरान हमने इन क्षेत्रों में एक लंबा सफर तय किया है। सरकार ने अपने महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र पर विशेष बल दिया है। 'प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना' तथा 'आयुष्मान भारत' जैसे कार्यक्रमों से गरीबों के कल्याण के प्रति संवेदनशीलता व्यक्त होती है और उन तक प्रभावी सहायता भी पहुंच रही है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, 'आयुष्मान भारत' योजना, दुनिया की सबसे बड़ी जन-स्वास्थ्य योजना बन गई है। जन-साधारण के लिए, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता, दोनों में सुधार हुआ है। 'जन-औषधि योजना' के जरिए, किफायती दामों पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाइयाँ उपलब्ध होने से, सामान्य परिवारों के इलाज पर होने वाले खर्च में कमी आई है।

प्यारे देशवासियो,

प्राचीन काल में ही, एक अच्छी शिक्षा व्यवस्था की आधारशिला नालंदा और तक्षशिला के महान विश्वविद्यालयों में रखी जा चुकी थी। भारत में सदैव ज्ञान को शक्ति, प्रसिद्धि या धन से अधिक मूल्यवान माना जाता है। शैक्षिक संस्थाओं को भारतीय परंपरा में ज्ञान अर्जित करने का स्थान अर्थात विद्या का मंदिर माना जाता है। लंबे समय तक औपनिवेशिक शासन के कारण आई विपन्नता को दूर करने में, शिक्षा ही सशक्तीकरण के एक प्रभावी माध्यम के रूप में उभरी है। हमारी आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के आधार का निर्माण आजादी के तुरंत बाद के दौर में प्रारम्भ हुआ था। तब हमारे संसाधन बहुत ही सीमित थे। फिर भी, शिक्षा के क्षेत्र में हमारी कई उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। हमारा प्रयास है कि देश का कोई भी बच्चा अथवा युवा, शिक्षा की सुविधा से वंचित न रहे। साथ ही, शिक्षा प्रणाली में सुधार करते हुए अपनी शिक्षा व्यवस्था को विश्व स्तरीय बनाने के लिए हमें निरंतर प्रयास करते रहना है।

'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन', अर्थात इसरो, की उपलब्धियों पर हम सभी देशवासियों को बहुत गर्व है। इसरो की टीम अपने 'मिशन गगनयान' में आगे बढ़ रही है, और सभी देशवासी, इस वर्ष 'भारतीय मानव अंतरिक्ष यान कार्यक्रम' के और तेज गति से आगे बढ़ने की उत्साहपूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं।

इसी वर्ष टोकियो में ओलंपिक खेल आयोजित होने जा रहे हैं। पारंपरिक रूप से, कई खेलों में, भारत अच्छा प्रदर्शन करता रहा है। हमारे खिलाड़ियों और एथलीटों की नई पीढ़ी ने, हाल के वर्षों में, अनेक खेल प्रतियोगिताओं में देश का नाम ऊंचा किया है। ओलंपिक 2020 की खेल प्रतियोगिताओं में, भारतीय दल के साथ करोड़ों देशवासियों की शुभकामनाओं और समर्थन की ताकत मौजूद रहेगी।

प्रवासी भारतीयों ने भी सदैव देश का गौरव बढ़ाया है। अपनी विदेश यात्राओं के दौरान मैंने देखा है कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने, न केवल वहाँ की धरती को अपने परिश्रम से समृद्ध किया है, बल्कि उन्होंने विश्व समुदाय की निगाह में भारत की छवि को भी निखारा है। कई प्रवासियों ने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है।

मेरे प्यारे देशवासियो,

देश की सेनाओं, अर्धसैनिक बलों और आंतरिक सुरक्षा बलों की मैं मुक्त-कंठ से प्रशंसा करता हूं। देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को बनाए रखने में उनका बलिदान, अद्वितीय साहस और अनुशासन की अमर गाथाएँ प्रस्तुत करता है। हमारे किसान, हमारे डॉक्टर और नर्स, विद्या और संस्कार देने वाले शिक्षक, कर्मठ वैज्ञानिक और इंजीनियर, सचेत और सक्रिय युवा, हमारे कल–कारखानों को अपने परिश्रम से चलाने वाले श्रमिक बंधु, औद्योगिक विकास में योगदान देने वाले उद्यमी, हमारी संस्कृति और कला को निखारने वाले कलाकार, भारत के सर्विस सैक्टर को विश्व भर में सम्मानित स्थान दिलाने वाले सभी प्रोफेशनल्स तथा अन्य अनेक क्षेत्रों में अपना योगदान देने वाले हमारे सभी देशवासी और खासकर, हर तरह की बाधाओं के बावजूद सफलता के नए मानदंड स्थापित करने वाली हमारी होनहार बेटियाँ, ये सभी हमारे देश का गौरव हैं।

इस महीने के आरंभ में, मुझे देश के ऐसे ही कुछ कर्मठ लोगों से मिलने और उनके साथ बातचीत करने का अवसर मिला, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय काम किया है। सादगी और निष्ठा के साथ चुपचाप अपना काम करते हुए, उन लोगों ने विज्ञान और इनोवेशन, खेती और वन संपदा के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल-कूद, प्राचीन शिल्पकलाओं को फिर से लोकप्रिय बनाने, दिव्यांग व्यक्तियों, महिलाओं और बच्चों के सशक्तीकरण, तथा जरूरतमन्द लोगों के लिए भोजन और पोषण की व्यवस्था करने आदि, विभिन्न क्षेत्रों में, अपार योगदान दिया है। उदाहरण के लिए जम्मू-कश्मीर में सुश्री आरिफ़ा जान ने नमदा दस्तकारी को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए, तेलंगाना में सुश्री रत्नावली कोट्टपल्ली ने थेलेसिमिया से प्रभावित लोगों के उपचार के लिए, केरल में श्रीमती देवकी अम्मा ने अपने व्यक्तिगत प्रयास से वन-संपदा उत्पन्न करके, मणिपुर में श्री जामखोजांग मिसाओ ने सामुदायिक विकास के लिए काम करके और पश्चिम बंगाल में श्री बाबर अली ने बचपन से ही कमजोर वर्ग के बच्चों में शिक्षा का प्रसार करने के अपने सराहनीय योगदान से लोगों के जीवन में आशा का संचार किया है। ऐसे बहुत से लोग हैं, मैंने तो उन में से केवल कुछ के ही नाम लिए हैं। ऐसे लोग यह सिद्ध करते हैं कि सामान्य व्यक्ति भी, अपने आदर्शों और कर्मठता के बल पर, समाज में बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं। बड़ी संख्या में, ऐसे अनेक स्वैच्छिक संगठन भी हैं, जो सरकार के साथ मिलकर, राष्ट्र-निर्माण के अभियान में, अपना योगदान दे रहे हैं।

प्यारे देशवासियो,

अब हम इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में प्रवेश कर चुके हैं। यह नए भारत के निर्माण और भारतीयों की नई पीढ़ी के उदय का दशक होने जा रहा है। इस शताब्दी में जन्मे युवा, बढ़-चढ़ कर, राष्ट्रीय विचार-प्रवाह में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं। समय बीतने के साथ, हमारे स्वाधीनता संग्राम के प्रत्यक्ष साक्षी रहे लोग हमसे धीरे-धीरे बिछुड़ते जा रहे हैं, लेकिन हमारे स्वाधीनता संग्राम की आस्थाएं निरंतर विद्यमान रहेंगी। टेक्नॉलॉजी में हुई प्रगति के कारण, आज के युवाओं को व्यापक जानकारी उपलब्ध है और उनमें आत्मविश्वास भी अधिक है। हमारी अगली पीढ़ी हमारे देश के आधारभूत मूल्यों में गहरी आस्था रखती है। हमारे युवाओं के लिए राष्ट्र सदैव सर्वोपरि रहता है। मुझे, इन युवाओं में, एक उभरते हुए नए भारत की झलक दिखाई देती है।

राष्ट्र-निर्माण के लिए, महात्मा गांधी के विचार आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक हैं। गांधीजी के सत्य और अहिंसा के संदेश पर चिंतन-मनन करना हमारी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। सत्य और अहिंसा का उनका संदेश हमारे आज के समय में और भी अधिक आवश्यक हो गया है।

किसी भी उद्देश्य के लिए संघर्ष करने वाले लोगों, विशेष रूप से युवाओं को, गांधीजी के अहिंसा के मंत्र को सदैव याद रखना चाहिए, जो कि मानवता को उनका अमूल्य उपहार है। कोई भी कार्य उचित है या अनुचित, यह तय करने के लिए गांधीजी की मानव-कल्याण की कसौटी, हमारे लोकतन्त्र पर भी लागू होती है। लोकतन्त्र में सत्ता एवं प्रतिपक्ष दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। राजनैतिक विचारों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ, देश के समग्र विकास और सभी देशवासियों के कल्याण के लिए दोनों को मिलजुलकर आगे बढ़ना चाहिए।

प्यारे देशवासियो,

गणतंत्र दिवस हमारे संविधान का उत्सव है। आज के दिन, मैं संविधान के प्रमुख शिल्पी, बाबासाहब आंबेडकर के एक विचार को आप सब के साथ साझा करना चाहूँगा। उन्होंने कहा था कि:

"अगर हम केवल ऊपरी तौर पर ही नहीं, बल्कि वास्तव में भी, लोकतंत्र को बनाए रखना चाहते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए? मेरी समझ से, हमारा पहला काम यह सुनिश्चित करना है कि अपने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, अडिग निष्ठा के साथ, संवैधानिक उपायों का ही सहारा लेना चाहिए।"

बाबासाहब आंबेडकर के इन शब्दों ने, हमारे पथ को सदैव प्रकाशित किया है। मुझे विश्वास है कि उनके ये शब्द, हमारे राष्ट्र को गौरव के शिखर तक ले जाने में निरंतर मार्गदर्शन करते रहेंगे।

प्यारे देशवासियो,

पूरे विश्व को एक ही परिवार समझने की 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की हमारी सोच, अन्य देशों से हमारे सम्बन्धों को मजबूत बनाती है। हम अपने लोकतान्त्रिक मूल्यों तथा विकास और उपलब्धियों को समूचे विश्व के साथ साझा करते आए हैं।

गणतन्त्र दिवस के उत्सव में विदेशी राष्ट्र प्रमुखों को आमंत्रित करने की हमारी परंपरा रही है। मुझे प्रसन्नता है कि इस वर्ष भी, कल के हमारे गणतन्त्र दिवस के उत्सव में, हमारे प्रतिष्ठित मित्र, ब्राज़ील के राष्ट्रपति श्री हायर बोल्सोनारो हमारे सम्मानित अतिथि के रूप में सम्मिलित होंगे।

विकास पथ पर आगे बढ़ते हुए, हमारा देश और हम सभी देशवासी, विश्व-समुदाय के साथ सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि हमारा और पूरी मानवता का भविष्य सुरक्षित रहे और समृद्धिशाली बने।

मैं एक बार फिर, आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई देता हूं और आप सबके सुखद भविष्य की कामना करता हूं।

जय हिन्द!

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