उत्‍तराखंड में 1024.5 करोड रुपये की लागत वाली 31 सीवेज प्रबंधन परियोजनाओं का क्रियान्‍वयन

उत्‍तराखंड में 1024.5 करोड रुपये की लागत वाली 31 सीवेज प्रबंधन परियोजनाओं का क्रियान्‍वयन

देहरादून : उत्‍तराखंड में सीवेज प्रबंधन परियोजनाओं के तहत हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे शहरों में 100 फीसदी अपशिष्‍ट जल शोधन की सुविधा उपलब्‍ध कराने का काम तकरीबन पूरा हो चुका है। राज्‍य में 1024.5 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली 155.45 एमएलडी क्षमता वाले जल शोधन संयंत्र (एसटीपी) से जुड़ी 31 अपशिष्‍ट प्रबंधन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इसमें 151.02 किलोमीटर लम्‍बी सीवर लाइन बिछाने/स्‍थानांतरित करने का काम भी शामिल है। इन परियोजनाओं में से 13 का काम पूरा हो चुका है। 139.5 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई इन परियोजनाओं के तहत बनाए गए जल शोधन संयंत्रों की कुल क्षमता 24 एमएलडी है। बाकी बची 18 परियोजनाएं क्रियान्‍वयन/अनुबंध के विभिन्‍न चरणों में हैं। इनमें से 16 परियोजनाओं का ठेका दे दिया है, जबकि दो के लिए निविदा प्रक्रिया चल रही है। जिन परियोजनाओं के लिए अनुबंध दे दिया गया है उनमें जल शोधन संयंत्र और इंटरसेप्‍शन और डाइवर्जन के काम शामिल हैं। इनमें हरिद्वार के जगजीतपुर और सराय में, ऋषिकेश के तपोवन में तथा श्रीनगर, जोशीमठ, कर्णप्रयाग और रूद्रप्रयाग में भी जल शोधन संयंत्रों के नवीकरण और इंटरसेप्‍शन तथा डाइवर्जन का काम शामिल है। इसके अलावा इनमें कीर्तिनगर में अलकनंदा नदी में प्रदूषण कम करने, ग्‍यासू में जल शोधन संयंत्र का नवीकरण, ऋषिकेश में स्‍वर्गाश्रम में पहलेसे बने जल शोधन संयंत्र का उन्‍नयन और मुन्‍नी की रेती में नया जल शोधन संयंत्र बनाने का काम शामिल है।
राज्‍य में 22 घाटों के निर्माण तथा इतनी ही संख्‍या में शवदाह गृह बनाने के लिए 161.16 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह परियोजनाएं विभिन्‍न चरणों में क्रियान्वित की जा रही हैं। इनमें फूल चट्टी, रामकुंड, भरत, संगम, कीर्तिनगर-ओल्ड गंगा, श्रीनगर नथनी, उफंडा गांव, श्रीनगर आईटीआई, बलावली, शामपुर, भोगपुर, चांडी, मनोकामन, जद-भरत, केदार, हीना, कोटेश्वर, नागेश्वर धाम, डुन्डा, कोटेश्वर महादेव, ऋषिकेश से देव प्रयाग के बीच पौढ़ी गड़वाल में घोलतीर, गोछेर और नंदप्रयाग घाट, देवप्रयाग से रूद्रप्रयाग के बीच टिहरी गढ़वाल, रूद्रप्रयाग, तथा हरिद्वार, उत्‍तरकाशी और चमोली जिलों में घाटों और शवदाहगृ हों के निर्माण से जुड़ी परियोजनाएं शामिल हैं।

हरिद्वार और ऋषिकेश राज्‍य के दो प्रमुख शहर होने की वजह से सरकार ने इन शहरों में जलमल शोधन सुविधाओं को और बेहतर बनाने के लिए कई पहलें की हैं और साथ ही इन स्‍थानों पर गंगा नदी की सफा सफाई से जुड़े कई कार्यों को भी प्रमुखता से लिया है। हरिद्वार में अनुमानित 114 एमएलडी अपशिष्‍ट जल की निकासी होती है, लेकिन जगजीतपुर और सराय में बने तीन जल शोधन संयंत्र केवल 63 एमएलडी जल शोधन ही कर पाते हैं और बाकी बचा दूषित जल गंगा नदी में सीधे प्रवाहित हो जाता है। इस कमी को पूरा करने के लिए ही जगजीतपुर में 18 एमएलडी क्षमता वाले मौजूदा जल शोधन संयंत्र के अतिरिक्‍त 64 एमएलडी क्षमता वाला एक और जल शोधन संयंत्र बनाने की मंजूरी दी गई है। इसके साथ ही सराय में भी 14 एमएलडी क्षमता वाला नया जल शोधन संयंत्र लगाया जा रहा है। ये दोनों ही संयंत्र सार्वजनिक और निजी भागीदारी के मॉडल पर काम करेंगे और शहर के अपशिष्‍ट जल शोधन की जरूरतों को पूरा करने का काम करेंगे। इन संयंत्रों के बनने से शहर में जल शोधन संयंत्रों की कुल क्षमता 145 एमएलडी हो जाएगी। आने वाले वर्षों में यह संयंत्र शहर की जल शोधन जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्‍त होंगे। हरिद्वार में इन जल शोधन प्रबंधन परियोजनाओं के लिए कुल 413.87 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

गंगा नदी की तलहटी को साफ करने तथा तैरते कचरे की समस्‍या से निपटने के लिए हरिद्वार में मई 2017 से ही एक ट्रेश स्किमर काम कर रहा है। इसके साथ ही यहां चांडीघाट में घाट और शवदाह गृह के निर्माण का काम प्रगति पर है। इस परियोजना की अनुमानित लागत 50.36 करोड़ रुपये है। इसका 41 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है।

ऋषिकेश में करीब 15 एमएलडी अपशिष्‍ट जल की निकासी होती है। भविष्‍य में इसके और ज्‍यादा होने की संभावना है। शहर में इस समय स्‍वर्गाश्रम, लक्‍कड़ घाट और आईडीपीएल में करीब 23 एमएलडी क्षमता वाले तीन जल शोधन संयंत्र हैं। लेकिन शहर से निकलने वाला अपशिष्‍ट जल का काफी कुछ हिस्‍सा इन संयंत्रों में नहीं पहुंचता, बल्कि सीधे नदी में गिरता है।

नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत लक्‍कडघाट में 26 एमएलडी क्षमता वाला एक नया जल शोधन संयंत्र मंजूर किया गया है। इसके लिए निविदा प्रक्रिया चल रही है। यह परियोजना 2019 तक पूरी हो जाएगी। स्‍वर्गाश्रम में जल शोधन संयंत्र के नवीकरण का काम प्रगति पर है, जो जून, 2018 तक पूरा हो जाएगा। ये दोनों संयंत्र मिलकर 29 एमएलडी अपशिष्‍ट जल का शोधन कर सकेंगे। इसके अलावा मुन्‍नी की रेट्टी में 67 करोड़ रुपये की लागत से 12.5 एमएलडी क्षमता वाले शोधन संयंत्र का काम पहले से ही शुरू हो चुका है।

ऋषिकेश में सीवर लाइनों की जरूरतों को पूरा करने के लिए समूचे सीवेज प्रबंधन ढांचे को बेहतर बनाने के लिए 12 किलोमीटर सीवर लाइनें बिछाने तथा मौजूदा पम्‍प स्‍टेशनों के उन्‍नयन का काम भी इस परियोजना में शामिल है।

हरिद्वार और ऋषिकेश शहरों की प्रमुख समस्‍या यह है कि यहां आवासीय तथा औद्योगिक इकाइयों से अपशिष्‍ट जल के प्रवाह की व्‍यवस्‍था सीवेज प्रणाली से पूरी तरह से जुड़ी हुई नहीं है, जिसकी वजह से सारा प्रदूषित जल शोधन संयंत्रों तक नहीं पहुंच पाता। जल शोधन परियोजना की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि ज्‍यादा से ज्‍यादा घरों और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषित जल की निकासी को सीवेज प्रणाली से जोड़ने की व्‍यवस्‍था हो। इसी वजह से नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत सीवर लाइनें बिछाने के काम को भी समान रूप से प्रमुखता दी गई है।






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