महाराणा का कद नापने का दुस्साहस - राजस्थान सरकार का निर्णय

महाराणा का कद नापने का दुस्साहस - राजस्थान सरकार का निर्णय

लखनऊ। राजस्थान में पाठ्यपुस्तकों में परिवर्तन का मुद्दा सरगर्म है । कांग्रेस सरकार के इस कदम से लोग उद्वेलित हैं। बताया जा रहा है कि राजस्थान बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन की वेबसाइट में मौजूद कक्षा 10 की सामाजिक विज्ञान की ई-पाठ्यपुस्तक में कहा गया है कि 16 वीं सदी के मेवाड के राजा महाराणा प्रताप में शत्रुतापूर्ण परिस्थितियों में एक सैन्य कमांडर के रूप में धैर्य, नियंत्रण और योजना की कमी थी।

महाराणा एक बार पुनः पराजित कर दिए गए हैं। आरबीएसई के सामाजिक विज्ञान की किताब के दूसरे पाठ 'संघर्षकालीन भारत 1206एडी- 1757एडी में लिखा गया है "सेनानायक में प्रतिकूल परिस्थितियों मे जिस धैर्य, संयम और योजना की आवश्यकता होनी चाहिए। महाराणा प्रताप में उसका अभाव था।" विरोध बढ़ने पर आरबीएसई ने कहा कि वह इस मामले की जांच करेगा। राजस्थान की किताबों के इतिहास में बताया गया कि, महाराणा प्रताप अकबर के खिलाफ लड़े गए हल्दीघाटी युद्ध में नहीं जीत पाए हैं। इसके पहले राजस्थान में इतिहास की किताबों मे पढ़ाया जाता था कि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना जीती थी मगर पिछली भाजपा की सरकार ने ऐतिहासिक तथ्यों के हवाले से पाठ्यक्रम में परिवर्तन करते हुए बताया था कि, महाराणा प्रताप की सेना ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर पर विजय प्राप्त की थी। हल्दीघाटी युद्ध के सम्बन्ध में अधिकांश इतिहासकारों का मत रहा कि अकबर की सेना पराजित हुई, महाराणा प्रताप विजयी रहे। यद्यपि दोनों सेनाओं का भारी नुकसान हुआ। परन्तु दरबारी इतिहासकारों ने सन्देह का वातावरण बनाते हुए अकबर के विजेता होने का प्रचार शुरू कर दिया, जिसे मुगल, अंग्रेजों के कालखण्ड में मान्यता दी गई। यही क्रम अब तक चला आ रहा था, जिसे पिछली भाजपा सरकार ने बदला। सामाजिक विज्ञान की किताब में महाराणा प्रताप के हल्दीघाटी युद्ध के जीतने के बारे में उल्लेख किए गए तथ्यों को हटा दिया गया है। यही नहीं इस किताब में यह भी साफ कर दिया गया है कि महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुआ युद्ध कोई धार्मिक युद्ध नहीं था बल्कि वह एक राजनीतिक युद्ध था।

स्मरण रहे गहलोत सरकार के दौरान किताबों की समीक्षा के लिए बनी कमेटी की संस्तुति पर पाठ्यपुस्तक मंडल की ओर से कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान की किताब के संस्करण में महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटा दिया है। इस प्रकरण पर मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य एवं प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के साथ इतिहासकारों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। इन लोगों का मत है कि इस तरह किताब से महाराणा प्रताप और चेतक घोड़े से जुड़े अनछुए पहलुओं और तथ्यों को हटाना गलत है। सरकार के इस कदम से आने वाली पीढ़ी को महाराणा प्रताप के गौरवशाली इतिहास का ज्ञान पूरा नहीं मिल पाएगा। वर्ष 2017 की किताब में प्रताप के हल्दीघाटी के युद्ध एव चेतक घोड़े की वीरता का वर्णन पूरा था लेकिन वर्ष 2020 के संस्करण में प्रताप और चेतक की वीरता को काट-छांट कर उसे कम कर दिया गया है।

इस काट-छांट में लेखक चंद्रशेखर शर्मा की सहमति तक नहीं ली गई। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता। अशोक गहलोत व राजस्थान सरकार तथा कांग्रेस पार्टी पर ये पंक्तियां क्या उपयुक्त नहीं हैं? सोशल मीडिया पर कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक की वीडियो कांफ्रेंसिंग का चित्र प्रसारित हो रहा है। जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष बैठकर बैठक की अध्यक्षता कर रही है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सिर झुकाए खड़े हैं । राष्ट्रीय स्वाभिमान को महाराणा प्रताप ने दिल्ली के कदमों में डालने से इनकार कर दिया, उसकी सजा आज तक उन्हें दास मानसिकता के लोग दे रहे हैं। इस चित्र के आधार पर उस समय की कल्पना कीजिए, मुगल सेना में लाखों सैनिक भारतीय ही थे, आज जब लोकतंत्र है, तब राज्य का निर्वाचित मुख्यमंत्री किसी संवैधानिक पद पर आसीन न होने वाली महिला के सामने, उसके न होते हुए भी बैठने की हिम्मत नहीं कर सकता तो मुगलों के दरबारियों की क्या स्थिति हो सकती है। इस प्रकरण पर स्पष्टीकरण दिया गया कि गलवान घाटी में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी जा रही थी। तो क्या वीर जवानों को बैठकर श्रद्धांजलि कांग्रेस अध्यक्ष दे रही थीं? मैडम पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं। परन्तु भारत के प्रधानमंत्री को लगातार अपमानित करने वाली कांग्रेस व प्रथम परिवार को बताना चाहिए कि महाराणा प्रताप के कद को नापने का दुस्साहस क्यों किया जा रहा है? स्वतन्त्रता के बाद पाठ्यपुस्तकों से भूषण की ओजस्वी कविताओं व श्याम नारायण पाण्डेय के खण्डकाव्य हल्दीघाटी को सुनियोजित षडयंत्र से पाठ्क्रम से बाहर किया गया। अकबर या अन्य आक्रांताओं का महिमा मण्डन यदि कांग्रेस या अन्य कोई भी पार्टी या सरकार करना चाहती है तो खुलकर करे परन्तु बाल मन व किशोर बच्चों पर अपनी कुत्सित मानसिकता थोपना उचित नहीं है।


कैसी विडंबना है कि महाराणा का सैन्य कमांडर के रूप में मूल्यांकन सत्ता के दलाल करेंगे। आज चीन भारतीय सैन्य शक्ति को चुनौती दे रहा है, परन्तु पता चल रहा कि उसकी महत्वाकांक्षा को बौते से दिया गया। आजादी के बाद भारत पर किए गए आक्रमणों का मुकाबला करते समय महाराणा प्रताप की सामरिक नीति का अनुगमन नहीं किया गया। इसीलिए भारत पर बार-बार आक्रमण किया जा रहा है। हल्दीघाटी युद्ध में अपने से चार गुनी संख्या वाली सेना को नेस्तनाबूद करने वाले महाराणा का इतिहास राजस्थान के चप्पे चप्पे पर अंकित है। हल्दीघाटी युद्ध के बाद लगातार वन-वन भटकते, युद्व रणनीति व तैयारी कर महाराणा ने 1582 ई. में विजयादशमी के दिन दिवेर में अकबर की सेना को पूरी तरह से पराजित किया। भागते सैनिकों को अजमेर तक दौड़ाया गया। 36000 मुगल सैनिकों ने महाराणा की सेना के सामने आत्मसमर्पण किया। इतिहास बताता है कि 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध के बाद भी अकबर ने महाराणा को पकड़ने या मारने के लिए 1577 से 1582 के बीच करीब एक लाख सैन्यबल भेजे। अंगेजी इतिहासकारों ने लिखा है कि हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको उन्होंने बैटल ऑफ दिवेर कहा है, मुगल बादशाह के लिए एक करारी हार सिद्ध हुआ था।

कर्नल टॉड ने भी अपनी किताब में जहां हल्दीघाटी को थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़ की संज्ञा दी, वहीं दिवेर के युद्ध को मेवाड़ का मैराथन बताया है (मैराथन का युद्ध 490 ई.पू. मैराथन नामक स्थान पर यूनान केमिल्टियाड्स एवं फारस के डेरियस के मध्य हुआ, जिसमें यूनान की विजय हुई थी, इस युद्ध में यूनान ने अद्वितीय वीरता दिखाई थी), कर्नल टॉड ने महाराणा और उनकी सेना के शौर्य, युद्ध कुशलता को स्पार्टा के योद्धाओं सा वीर बताते हुए लिखा है कि वे युद्धभूमि में अपने से 4 गुना बड़ी सेना से भी नहीं डरते थे।

किताबों में यह इतिहास क्यों नहीं पढ़ाया जाता? राजस्थान सरकार का यह निर्णय राष्ट्रीय स्वाभिमान पर घातक चोट है, उसे भारतीय मानबिन्दुओं का सम्मान करना चाहिए। समीचीन होगा स्कूली पाठ्ययकर्मों को राजनीतिक विद्वेष का मंच नही बनने दिया जाय। (हिफी)

(मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

epmty
epmty
Top