प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में घोटाले की जवाबदेही किस पर?

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में घोटाले की जवाबदेही किस पर?

लखनऊ। कृषि सम्बन्धी विधेयकों को संसद के दोनों सदनों से पारित कराने के बाद जहां प्रधानमंत्री इसे किसानों की बिचैलियों से मुक्ति व उनकी आजादी का पर्व बता रहे हैं, वहीं कांग्रेस इसे अपनी ही स्कीम बता कर मोदी सरकार द्वारा प्रचारित करने व कृषि क्षेत्र को कारपोरेट घरानों को सौपने का आरोप लगाकर हंगामा कर रही है। किसानों के जीवन पर इन विधेयकों का क्या प्रभाव पड़ेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा परन्तु बहुप्रशंसित पीएम किसान सम्मान निधि योजना में घोटाले की खबर से ब्यूरोक्रेसी की नाकाबिलियत के साथ ही नमो सरकार के भ्रष्टाचार शून्य प्रशासन के दावों पर सवालिया निशान लग गया है।

बताया जा रहा है कि तमिलनाडु में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में 110 करोड़ रुपये की सेंध लगाने के मामले में अब तक 90,000 अपात्र लाभार्थियों की पहचान की जा चुकी है। राज्य सरकार द्वारा इस मामले की तेजी से जांच की जा रही है और अब तक 32 करोड़ रुपये सरकारी खाते में वापस किए जा चुके हैं। विगत कुछ महीनों में हुए इस घोटाले के तहत 5.5 लाख फर्जी रजिस्ट्रेशन किए गए थे और अपात्र लाभार्थियों के पंजीकरण के जरिए 110 करोड़ रुपये की रकम डकार ली गई थी। राज्य सरकार का कहना है कि किसानों को खुद रजिस्ट्रेशन की सुविधा प्रदान करना और कोरोना महामारी के दौरान नियमों का आसान होना भी घोटाले के कारण हैं। कोरोना काल के दौरान बड़ी संख्या में अपात्र लोगों को दलालों द्वारा किसान स्कीम के तहत जोड़ा गया। राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार लोकल कंप्यूटर सेंटर्स के माध्यम से तमिलनाडु के 13 जिलों में एक सिंडिकेट इस घोटाले में काम कर रहा था। अचानक लाभार्थियों की संख्या बढ़ने पर जांच में यह घोटाला सामने आया था।

ध्यान रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत की थी। लगभग एक साल से ही इस योजना के अंतर्गत सेल्फ रजिस्ट्रेशन का फीचर लॉन्च किया गया था। इसकी मदद से कोई भी किसान खुद घर बैठे अपना रजिस्ट्रेशन कर सकता है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के. पलनिसामी ने भी इस फीचर को घोटाले का एक कारक बताया था। राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया है कि सेल्फ रजिस्ट्रेशन सुविधा के कारण कृषि विभाग के असिस्टेंट डायरेक्टर्स ने कंप्यूटर सेंटर्स के साथ मिलकर कल्लकुरूचि- विल्लुपुरम बेल्ट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में बड़ा घोटाला किया। कोरोना महामारी में फील्ड के अधिकारी किसानों के जरूरी रिक्वायरमेंट्स में व्यस्त हो गए और ऑफिस का दौरा नहीं कर सके, जिसका घोटालेबाजों ने जमकर फायदा उठाया। उल्लेखनीय है कि असम में भी लगभग 9 लाख अपात्र लाभार्थियों का मामला उजागर हुआ है। घोटाले की खबरें देश भर से आना चिंताजनक है।

ज्ञात हो किसानों को किसानी के लिए डायरेक्ट यानी बिना बिचैलियों के आर्थिक सहयोग देने वाली नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार देेेश की पहली सरकार है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार देश के 3 करोड़ 71 लाख किसान ऐसे हैं जिनके बैंक अकाउंट में पीएम किसान सम्मान निधि योजनांतर्गत में 12-12 हजार रुपये की धनराशि भेजी जा चुकी है। ये ऐसे किसान हैं जिन्हें योजना की शुरुआत से लाभ मिल रहा है और रिकॉर्ड में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई है। हालांकि, इस योजना के कुल लाभार्थी 11 करोड़ से ज्यादा हैं। योजनांतर्गत अब तक 93 हजार करोड़ रुपये की धनराशि सम्बन्धित लाभार्थियों के खातों में भेजी जा चुकी है।

स्मरण रहे ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार की मनाही के बावजूद पश्चिम बंगाल के 12 लाख किसानों ने इस योजनांतर्गत आवेदन किया है, लेकिन मोदी सरकार उन्हें धनराशि नहीं भेज पा रही है. जबकि वहां 71 लाख किसान परिवार बताए जाते हैं। सभी राज्यों ने इस योजनांतर्गत अपने-अपने किसानों को भरपूर पैसा दिलाने की कोशिश की है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि किसानों को सीधी मदद से उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सकती है।

घोटाले की जो खबरें आ रही हैं, उसकी जिम्मेवारी लेने से ब्यूरोक्रेसी बचना चाह रही है, अपनी नाकाबिलियत को छिपाने के लिए बलि का बकरा तलाश रही है। उत्तर प्रदेश की ही बात करें ,1,11,60,403 लाभार्थी बताए जा रहे हैं । अलग-अलग जिलों से जानकारी मिल रही है कि कुछ नाबालिगों के खाते में धनराशि भेज दी गई हैं । अनेक ऐसे लोगों के खाते में धनराशि भेजी गई है, जिनके आधार कार्ड क्रियाशील नहीं हैं । सवाल यह है कि मोदी सरकार की किसानों के प्रति प्रतिबद्धता की प्रतीक इस योजना के प्रति सन्देह का वातावरण क्यों बनाया जा रहा है? यदि अपात्र को धनराशि भेजी गई, तो उसका वेरिफिकेशन करने वाले अधिकारी की जवाबदेही क्यों नहीं तय की जा रही है?

स्थिति जैसा प्रचारित की जा रही है, उसके ठीक उलट दिखाई पड़ रही है। आधार कार्ड, बैंक खाता व खतौनी में नामों में वर्तनी की अशुद्धि के कारण भी पात्र व्यक्तियों के फार्म लंबित बताए जा रहे हैं, नामों में एकरूपता न होने के कारण भी अनेक लोग चक्कर काट रहे हैं। आधार कार्ड क्रियाशील न होना, टेक्निकल प्रॉब्लम है, यह घोटाला कैसे हो गया। एक तरफ यह कहना कि खेती की जा रही जमीन पर खतौनी के आधार पर एक ही व्यक्ति पात्र होगा, दूसरी तरफ एक परिवार से कई लोग लाभ ले रहे हैं, परस्पर विरोधाभासी बयान लगता है। पंजीकृत पेशेवर लोगों को खेती करते हुए भी पात्रता सूची से बाहर रखना विसंगति है।

बताया जाता है कि अनेक पंजीकृत वकील, चिकित्सक, इंजीनियर इत्यादि अपना व्यवसाय न चलने के कारण फटेहाल हैं। अपना पेट पालने के लिए व्यवसाय से इतर कोई अन्य कार्य करना बेईमानी क्यों बताई जा रही है? इस कोरोना आपदा में उन्हें कोई भी सरकारी मदद नहीं दी गई, यहां तक कि उन्हें राशन व प्रति माह एक हजार रुपए भी नहीं दिए गए। केंद्र हो या प्रदेश, भाजपा सरकारें ब्यूरोक्रेसी पर अत्यंत निर्भर हैं। इसीलिए अच्छे कार्य करने के बावजूद अगले कार्यकाल में उनकी वापसी पूर्व में टेढ़ी खीर रही है। बहुत दौड़ धूप व कई बार फार्म भरने के बाद प्रक्रिया पूरी करने के बावजूद अनेक किसानों को योजना के प्रारम्भ से धनराशि नहीं भेजी गई। केंद्र सरकार खेती की बोआई, सिंचाई, बीज खाद, कटाई, मड़ाई सुरक्षा की लागत किसान की पहुंच में लाने की बुनियादी जरूरतों पर ध्यान देने की बजाय जो सब्जबाग किसानों को दिखा रही है, उसके परिणाम भविष्य के गर्भ में है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना किसानों के साथ ही भाजपा के लिए भी लाभदायक है। सभी जरूरतमंद किसानों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 48 हजार रुपये वार्षिक धनराशि प्रदान करें तो समीचीन होगा। (मानवेन्द्र नाथ पंकज-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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