पीएमओ में दो पीके का दबदबा, पीके सिन्हा बने पीएम के सलाहकार

पीएमओ में दो पीके का दबदबा, पीके सिन्हा बने पीएम के सलाहकार
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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश कैडर के 1977 बैच के आईएएस अधिकारी प्रदीप कुमार सिन्हा ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्य सलाहकार के रूप में अपना कार्यभार संभाल लिया है। पीके सिन्हा को 30 अगस्त 2019 को पीएमओ में ओएसडी के रूप में नियुक्त किया गया था। मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति (एसीसी) द्वारा पीके सिन्हा की नियुक्ति को मंजूरी देने के बाद वे आज 11 सितंबर से वह प्रधानमंत्री के मुख्य सलाहकार के रूप में कार्य करेंगे। पीके सिन्हा अर्थशास्त्र में स्नातक और अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं। उन्होंने भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों में विभिन्न प्रमुख पदों पर कार्य किया है। 1977 बैच के आईएएस अधिकारी पीके सिन्हा देश के सबसे वरिष्ठ नौकरशाहों में से एक हैं। पीके सिन्हों को 13 जून 2015 को रिटायर होने के बाद भारत सरकार में कैबिनेट सचिव की जिम्मेदारी दी गई थी। पीएमओ में अन्य पीके मिश्रा और पीके सिन्हा की नियुक्ति के बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निकटतम घेरे में दो पीके का दबदबा हो गया है।


बिहार में औरंगाबाद जिले के मूल निवासी और यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी रहे पीके सिन्हा का जन्म 18 जुलाई, 1955 को हुआ था। उनका पूरा नाम प्रदीप कुमार सिन्हा है, लेकिन आम तौर पर लोग उन्हें पीके नाम से जानते हैं। मृदु भाषी सिन्हा जहां भी रहे अपने कार्यों की छाप छोड़ी है। पीके सिन्हा के पिता आईएएस अधिकारी रहे हैं और उनकी बहन रश्मि वर्मा और उनके बहनोई नवीन वर्मा बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं। रश्मि वर्मा को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के साथ भिड़ने के लिए जाना जाता है, जब वह कपड़ा सचिव के रूप में तैनात थीं। पीके सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत इलाहाबाद में अस्टिटेंट कलेक्टर के रूप में की थी। 1991-92 में वो आगरा के जिलाधिकारी और 1992-94 के दौरान वो मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पर कार्य करने के बाद 1994-95 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मौजूदा संसदीय क्षेत्र और तीर्थ नगरी वाराणसी के आयुक्त भी रहे हैं। 2003-04 में पीके सिन्हा ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी रह चुके हैं। पीके मिश्रा 1990 के दशक के अंत में वो केन्द्रीय खेल मंत्रालय में पहले निदेशक और युवा मामलों के संयुक्त सचिव की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। 2004-12 तक यूपीए सरकार के कार्यकाल में वो ज्यादातर समय पेट्रोलियम मंत्रालय में रहे, पेट्रोलियम मंत्रालय में रहते हुए उन्हें संयुक्त सचिव, अतिरिक्त सचिव और फिर विशेष सचिव भी बनाया गया था।


पीके सिन्हा को उनके सहयोगियों या मीडिया के साथ घुलमिल कर नहीं रहने के लिए जाना जाता है। बिजली मंत्रालय में सिन्हा के साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो उनकी कार्यशैली ऐसी है कि वह अपने काम को लेकर तटस्थ रहते हैं। वह केवल डिलिवर करने पर ध्यान देते हैं।

पीके सिन्हा के बैचमेट एक सेवानिवृत आईएएस अधिकारी कहते हैं कि वे बहुत ही काबिल अधिकारी है। उन्होंने बताया कि केबिनेट सचिव पद पर कार्यरत रहते हुए जो भी काम प्रधानमंत्री ने सौंपा है, उसे उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ किया है। उनके पास से कोई बात बाहर नहीं जाती है। विचारशील होना और बात न फैलाना पीके सिन्हा में दोनों गुण हैं। उनके समकक्ष उनको एक खुशमिजाज, कामकाजी और साफ-सुथरा अधिकारी मानते थे।

कैबिनेट सचिव रहते हुए जीएसटी तैयार करने में वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ मिलकर काम करने में उनकी अहम भूमिका रही है। उर्जित पटेल के आरबीआई के गवर्नर बनाए जाने में भी उनकी अहम भूमिका रही, क्योंकि वो उस कमेटी के प्रमुख थे, जिसका काम था रघुराम राजन के स्थान पर नये गवर्नर को खोजना।

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