आज ही के दिन 909 को बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था अरूणा आसिफ अली का जन्म

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नई दिल्ली। अरुणा गांगुली उर्फ अरुणा आसफ अली का जन्म बंगाली परिवार में 16 जुलाई सन 1909 ई. को हरियाणा (तत्कालीन पंजाब) के कालका नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से ब्राह्मण था। को 1942 में भारत छोडो आंदोलन के दौरान मुंबई के गोवालीया मैदान में कांग्रेस का झंडा फहराने के लिये हमेशा याद किया जाता है। अरुणा गागुली ने स्कूली शिक्षा नैनीताल में प्राप्त की थी। नैनीताल में इनके पिता का होटल था। अरुणा गागुली बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। कक्षा में हमेशा सर्वोच्च स्थान पाती थीं। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह कोलकाता के श्गोखले मेमोरियल कॉलेज में शिक्षिका बन गई। यहीं पर इनकी मुलाकात आसफ अली से हुई, जो कांग्रेस के सक्रिय नेता और पेशे से एक वकील थे। अरुणा की मुलाकात जब आसफ अली से हुई, तो वो इनके विचारों से बहुत प्रभावित हुई। दोनों ने एक-दूसरे को समझा और धीरे धीरे नजदीकियां बढ़ने लगी और दोनों ने एक दूसरे से शादी करने का फैसला किया। अरुणा ने एक हिन्दू ब्राहमण होते हुए उम्र मे अपने से काफी बड़े एक मुस्लिम आसफ अली तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए 1928 में शादी कर ली। आसफ अली से शादी करने के बाद अरुणा गागुली, अरूणा आसफ अली के नाम से मशहूर हुईं।

अरूणा आसफ अली ने 1930, 1932 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय जेल की सजाएँ भोगीं। उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ॰ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण 1942 ई. के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में अरूणा आसफ अली ने अंग्रेजों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। 1942 से 1946 तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। सारी सम्पत्ति जब्त करने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया। भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद सन् 1947 ई. में अरुणा आसफ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष निर्वाचित की गईं।

वर्ष 1948 ई. में अरुणा आसफ अली सोशलिस्ट पार्टी में सम्मिलित हुई, लेकिन दो साल बाद सन् 1950 में उन्होंने अलग से लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी का गठन किया और श्मजदूर-आंदोलन में जी-जान से जुट गईं। बाद में सन 1955 में इस पार्टी का भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी में विलय हो गया था। सन् 1958 में उन्होंने माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और वर्ष 1964 में पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात वे पुनः कांग्रेस पार्टी से जुड़ गयी।

दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर अरुणा आसफ अली सन् 1958 में दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर चुनी गईं। अरुणा आसफ अली इंडोसोवियत कल्चरल सोसाइटी, ऑल इंडिया पीस काउंसिल, तथा नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वूमैन आदि संस्थाओं सहित दिल्ली से प्रकाशित वामपंथी अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र पेट्रियट से वे जीवनपर्यंत जुड़ी रहीं।

1975 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार और 1991 में अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान के लिए जवाहर लाल नेहरू पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। 29 जुलाई 1996 को 87 वर्ष की आयु में अरुणा आसफ अली का देहांत हो गया। 1998 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' और भारतीय डाक सेवा द्वारा जारी किए गए एक डाक टिकट से सम्मानित किया गया। उनके सम्मान में नई दिल्ली की एक सड़क का नाम उनके नाम पर अरुणा आसफ अली मार्ग रखा गया था।

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